मेरे बारे में

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The only thing I really wish to do with my life is to inspire someone. I want to touch someone’s life so much that they can genuinely say that if they have never met me then they wouldn’t be the person they are today. I want to save someone; save them from this cold, dark and lonely world. I wish to be someone’s hero, someone that people look up to. I only wish to make a change, even if it’s a small one. I just want to do more than exist.

रविवार, 31 जुलाई 2011

समस्या का समाधान.....

                                काफी समय पहले की बात है. ब्रह्माजी को एक बार छुट्टी की जरूरत पड़ी. वे विष्णु जी के पास पहुँचे. विष्णुजी ने उन्हें जाने की इजाजत देते हुए कहा की वे अपनी जगह किसी और को नियुक्त करके ही छुट्टी पर जाएँ.  
                               अब ब्रह्माजी ने सोचा कि किसको ढूंढे जो उनकी जगह काम कर सके. आखिर ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उन्हें एक ऐसा व्यक्ति मिल ही गया. वह व्यक्ति देखने में ही काफी आलसी लग रहा था. उस समय भी वह सो रहा था. ब्रह्मा जी  ने उसे जगाया और उसे अपनी समस्या बताई. वह व्यक्ति मान गया और पूछा कि उसे करना क्या पड़ेगा.
                               ब्रह्मा जी उसे अपने साथ  एक जगह ले गए, जहाँ बहुत सी मिटटी पड़ी थी. ब्रह्मा जी ने उस व्यक्ति से कहा,"देखो, ये जो मिटटी पड़ी है ना, बस इस मिटटी के तीन-चार पुतले रोज़ बना कर धरती पर फेकना है. और कोई काम नहीं है."
                                उस व्यक्ति ने सोचा कि वाह, काम तो कुछ भी नहीं है. रोज़ सिर्फ तीन-चार पुतले बनाओ और फिर तान के सो जाओ, बहुत बढ़िया. उसने हामी भर दी.
                               उसके हामी भरते ही ब्रह्मा जी उसे अपना कार्यभार सौंप कर चले गए. करीब एक हफ्ते बाद जब वो छुट्टी से वापस लौटे तो देखा कि वहां की सारी मिटटी गायब है, और वह व्यक्ति आराम से सो रहा है. उन्होंने तुरंत उसे जगाया और पूछा,"क्यों यहाँ की सारी मिटटी कहाँ गयी?"
                               उस व्यक्ति ने जवाब दिया,"प्रभुजी, वो तो मैंने सोचा की कौन रोज़-रोज़ तीन-चार पुतले बनाएगा ,इसलिए मैंने एक ही दिन में सारे पुतले बना कर धरती पर फ़ेंक दिए, और बाकी दिन आराम से सो रहा था. मगर आप इतना घबरा क्यों रहे हैं.?"
                              ब्रह्मा जी ने अपना सर पीटते हुआ कहा,"तुमने तो पूरा कचरा कर के धर दिया. सारी मिटटी के पुतले बनाने की क्या जरुरत थी ? अब उधर धरती पर जनसँख्या बढ गयी है. इतने सारे लोगों के खाने-रहने का इंतजाम करना पड़ेगा. और तुमने पुतले बनाये भी तो सब उलटे-सीधे हैं. खुद ही देख लो, किसी का हाथ नहीं है, किसी का पैर नहीं है, किसी का दिमाग नहीं है, सब के सब आड़े तिरछे बने हैं. तुमने तो काम और बढा कर रख दिया है."
                   काफी देर तक ब्रह्मा जी समस्या का हल ढूंढ़ते रहे .जब उनकी समझ में कुछ नहीं आया तो वे पहुँच गए विष्णुजी के पास . उन्हें अपनी समस्या बताई . विष्णु जी भी उनकी समस्या सुन कर सोच में पड़ गए . उन्हें भी कुछ नहीं सुझा.
                           इतने में नारद मुनि का आगमन हुआ. नारदजी के पूछने पर विष्णुजी ने उन्हें भी समस्या सुना दी. समस्या सुनते ही नारदजी ने कहा ," अरे,बस इतनी सी बात है, चलिए मै आपको इस समस्या का हल बताता हूँ . धरती लोक में एक नया सरकारी विभाग चालू करिए और सभी को उसमे भर्ती करवा दीजिये . बस ,  आपकी समस्या ख़त्म ."
                           विष्णुजी और ब्रह्माजी , दोनों को उनकी बात पसंद आती है . धरतीलोक पर एक नया विभाग चालू किया जाता है , जिसका नाम रखा जाता है  "रेलवे  विभाग " और सभी को उसमे भरती कर दिया जाता है. 

सोमवार, 18 जुलाई 2011

सुबह 07.30 बजे की ट्रेन..........

                                   आज वो फिर लेट हो गया था. ट्रेन छूटने में कुछ ही समय बाकी रह गया था. जल्दी-जल्दी स्टैंड में अपनी स्कूटर खड़ी कर, वह स्टेशन की ओर दौड़ पडा. चलते-चलते घडी पर नजर दौड़ाई तो देखा कि सिर्फ एक मिनट रह गया है, ट्रेन छूटने में. उसने सोचा कि आज तो शायद ट्रेन छूट ही जाएगी. जेब से फुर्ती में मोबाइल निकाल कर उसने अपने दोस्त को कॉल लगाई.
                                  "हेलो......सुरेन्द्र....?.... हाँ मै दीपक बोल रहा हूँ.......कहाँ हो.....?"
                                  "हाँ....दीपक......मै ट्रेन में हूँ.....पीछे से तीसरे डिब्बे में......जल्दी आओ ट्रेन स्टार्ट हो गयी है......."
                                  "अरे, स्टार्ट हो गयी.......ऐसा करो, चेन खींच दो........मै स्टेशन के बाहर हूँ.....बस आ रहा हूँ......"
                                  स्टेशन से लगभग आधी बाहर निकल चुकी ट्रेन, चेन खिंचने की वजह से खड़ी हो गयी. क़रीब पाँच मिनट बाद जब ट्रेन फिर चली, तो तब तक दीपक ट्रेन में पहूँच चुका था.
                                  ट्रेन में पहुँच कर उसने राहत की साँस ली. अगले स्टेशन पर उतर कर, वह पीछे से तीसरे डिब्बे में पहुँच गया, जहाँ कि उसका दोस्त बैठा था. दोनों आपस में इधर-उधर की बातें करने लगे. 
                                  यह उनका रोज़ का रुटीन बन गया था. रोज़ सुबह 07.30 बजे की ट्रेन से वे आना-जाना करते थे. पास ही के एक छोटे से शहर में एक प्रायवेट कम्पनी में वे नौकरी करते थे. कई साल हो चुके थे उन्हें, अत: अब तो उन्हें आदत पड़ गयी थी, इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी की.
                                  आज रोज़ के मुकाबले कुछ ज्यादा ही भीड थी ट्रेन में. बातें करते-करते दीपक की नजर एक बुजुर्ग सज्जन पर पडी, जो काफी देर से जगह ना होने के कारण, खडे हुऐ थे. वे काफ़ी बेचैन भी नजर आ रहे थे. उनकी उम्र का लिहाज़ कर दीपक ने उन्हें अपनी सीट पर बैठा लिया. वे बुजुर्ग सज्जन उसे दुआएँ देते हुए बैठ गए. दीपक ने बातें करते हुए उनसे परेशानी का कारण पूछ लिया. 
                                  बुजुर्ग ने कहा,"क्या बताऊँ बेटा, घर से जल्दी में निकला था, स्टेशन के लिए, जब टिकट खरीदने के लिए टिकट-खिड़की पर गया तो वहाँ काफी भीड़ थी. इधर ट्रेन भी आकर खड़ी थी. कही ट्रेन न छूट जाय, इसलिए बिना टिकट लिए ही ट्रेन में बैठ गया हूँ. अब तो यही सोच रहा हूँ कि कोई टी.सी. ना पकड़ ले."
                                  "कोई बात नहीं दादा, आज ट्रेन में कोई टी.सी. नहीं दिखाई दिया मुझे. कोई नहीं पकडेगा, शांति से बैठिये. वैसे आपको उतरना कहाँ है."
                                  "बस अगले स्टेशन पर ही उतरना है मुझे बेटा, लेकिन उतरने के बाद गेट पर भी तो टी.सी. टिकट पुछेगा."
                                  दीपक ने मुस्कुराते हुए कहा,"चलिए दादा, आज आपको गेट से बाहर निकलवाना मेरी जिम्मेदारी है, मुझे भी अगले स्टेशन पर ही उतरना है, बस आप मेरे पीछे-पीछे चलते रहना, कुछ फासले पर, ठीक है?"
                                  कुछ देर बाद ट्रेन अगले स्टेशन रुकी. दीपक ने उन बुजुर्ग व्यक्ति को अपने पीछे आने का इशारा कर गेट की ओर चल दिया.
                                  गेट पर टी.सी. यात्रियों की टिकट चैक कर रहा था. दीपक धीरे-धीरे चलते हुए गेट पर पहुँचा. जैसे ही टी.सी. ने दीपक से टिकट दिखाने को कहा, उसने बाहर की ओर दौड़ लगा दी. टी.सी. ने दीपक को भागते हुए देखा, तो पीछे से आवाज लगायी, और उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा.
                                  अब टी.सी. के गेट से हटते ही बुजुर्ग सज्जन फुर्ती में गेट से बाहर निकल गए. उधर कुछ दूर पर टी.सी. ने दीपक को पकड़ लिया, और उससे टिकट मांगी. दीपक ने चुपचाप जेब से मंथली सीज़न टिकट निकाल कर टी.सी. के हाथ पर रख दी. टी.सी. ने टिकट चैक करते हुए पूछा,"जब तुम्हारे पास टिकट थी, तो फिर भागे क्यों थे.?"
                                 दीपक ने टिकट को अलट-पलट कर देखते हुए कहा,"भाई साब, इस टिकट पर तो ऐसा कहीं नही लिखा कि भागना मना है."
                                 टी.सी ने दीपक को घूर कर देखा और फिर बडबडाता हुआ गेट की तरफ़ चला गया.दीपक ने मुस्कुरातें हुए बुजुर्ग व्यक्ति की तरफ़ देखा, जो तब तक बाकी लोगों के साथ उनके पास आ चुके थे. वे उसे दुआएँ देने लगे और धन्यवाद देते हुए चले गए.दीपक भी गुंनगुनाता हुआ अपने आफिस की तरफ चल दिया.

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

बारिशों के मौसम में......



कुछ ख्वाब से उभर आए है,                        
बारिशों   के   मौसम    में .


               अरमां दिल में जग आए है ,
               बारिशों   के   मौसम   में .

                           ज़हन में वो याद आए हैं,
                           बारिशों  के  मौसम  में .


                                               आंखे  भीग  आई   हैं ,
                                               बारिशों के मौसम में .


                                                          पल जो कल साथ बिताये थे,
                                                          बारिशों    के    मौसम   में .


                                                                   आज फिर नज़रों में छाए हैं,
                                                                   बारिशों   के   मौसम   में .


                                                                                फूलों पर बिखरी है शबनम
                                                                                बारिशों   के   मौसम   में .


                                                                                                   बूँदे बनी हैं आज दुल्हन
                                                                                                   बारिशों   के   मौसम   में 

बुधवार, 6 जुलाई 2011

रेलवे की नई ई-टिकट सेवा जल्द

भारतीय रेलवे अपनी ई-टिकट सेवा शुरू करने वाला है. इसमें ट्रैवल एजेंट के लिये जगह नहीं होगी और यह सिर्फ व्यक्तिगत इस्तेमाल करने वालों के लिये आरक्षित होगी.

आईआरसीटीसी की ई-टिकट से इतर भारतीय रेल की इस नयी सेवा में ट्रैवल एजेंटों और व्यावसायिक संगठनों की कोई भूमिका नहीं होगी. वेबसाइट पर सिर्फ व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं को ही टिकट खरीदने की अनुमति होगी.

आईआरसीटीसी सेवा में ट्रैवल एजेंटों पर टिकटों की बुकिंग कराकर उसे ऊंची कीमतों पर बेचने का आरोप है.

लोगों की नाराजगी को देखते हुए रेलवे ने आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर व्यस्ततम समय में ट्रैवल एजेंटों को तत्काल टिकट की बुकिंग से रोक दिया है.

नयी रेलवे ई-टिकट सेवा के तहत ग्राहकों को सेवा प्राप्त करने के लिये पहली बार खुद को पंजीकृत करने की जरूरत होगी. पंजीकरण नि:शुल्क होगा.

शुरू में प्रति यूजर आईडी पर प्रति महीने अधिकतम आठ लेन-देन की अनुमति होगी.  शयनयान श्रेणी के लिये प्रति टिकट पांच रुपये सेवा शुल्क लगेगा जबकि अन्य श्रेणियों के लिये प्रति टिकट दस रुपये होगा.

आईआरसीटीसी शयनयान श्रेणी के लिये प्रति टिकट दस रुपये और अन्य श्रेणियों के लिये 20 रुपये प्रति टिकट शुल्क लेती है.

नयी सेवा www.indianrailways.gov.in पर उपलब्ध होगी.

सेवा रात साढ़े 12 बजे से रात साढ़े 11 बजे तक (करीब तेईस घंटे) उपलब्ध होगी और सिर्फ बीच के एक घंटे के लिए बंद रहेगी.

परियोजना की शुरुआत इस उद्देश्य से की गई है कि लोगों के लिये एक ही विंडो इंटरफेस पर सभी सेवाएं एवं सूचनाएं उपलब्ध हो जाएं.

इस सेवा से यात्रियों के लिए टिकट बुक कराने के अन्य रास्ते खुल जाएंगे जबकि आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर दबाव कम होगा.

मोबाइल फोन पर भी टिकट बुक कराने की सेवा देने का प्रस्ताव है.
सेवा लेने के इच्छुक और इंटरनेट रखने वाले ग्राहकों को भारतीय रेल की वेबसाइट से मोबाइल फोन पर मोबाइल टिकट आवेदन डाउनलोड करना होगा.

वेबसाइट पर जल्द ही मालगाड़ी और पार्सलों की स्थिति का पता लगाने के अलावा कई अन्य सेवाएं शुरू होने की उम्मीद है.

प्रार्थना जो सुन ली गयी........

मैंने भगवान से मांगी शक्ति ,                            
उसने दी मुझे कठिनाइयाँ ,
हिम्मत बढाने के लिए .

                                          मैंने भगवान से मांगी बुद्धि ,
                                          उसने दी मुझे दी उलझने ,
                                          सुलझाने के लिए.

मैंने भगवान से माँगा प्यार ,
उसने दिए मुझे दुखी लोग,
निस्स्वार्थ सेवा करने के लिए  .

                                          मैंने भगवान से माँगा वरदान ,
                                          उसने दिए मुझे अवसर ,
                                          उसे प्राप्त करने के लिए .

मैंने भगवान से मांगी हिम्मत ,
उसने मुझे दी परेशानियाँ ,
ऊपर उठने के लिए .

                                         वो मुझे नहीं मिला , जो मैंने माँगा था ,
                                         मुझे वो मिल गया , जो मुझे चाहिए था .