विष्णु जी श्रीरसागर में अपनी शैया पर विराजमान थे . वे काफी गहन सोच-विचार में मग्न थे . माथे पर चिंता की लकीरें थी . इतने में नारद जी का आगमन हुआ .
"नारायण-नारायण , प्रणाम प्रभु जी ."
विष्णु जी का ध्यान भंग हुआ . सामने देखा तो नारद मुनि खड़े थे . मंद-मंद मुस्कुराते हुए उन्होंने पूछा,"आइये नारद जी , आइये . कहिये मुनिवर ,कैसे आना हुआ ? कहीं रास्ता तो नहीं भटक गए ? या फिर कोई मुसीबत आन पड़ी है ?"
"अरे नहीं प्रभु जी , मै तो बस यूँ ही इधर से गुजर रहा था . सोचा कि आपके दर्शन कर लूँ , इसलिए चला आया . मगर प्रभु जी मैं ये क्या देख रहा हूँ ? आपके माथे पर चिंता कि लकीरें ? सब कुशल मंगल तो है?"
"मुनिवर , बात कुछ यूँ है कि अपने यमराज काफी दिनों से गायब हैं . पता नहीं कहाँ चले गए हैं ? कुछ दिनों पहले मेरे पास आये थे छुट्टी मांगने के लिए . कह रहे थे कि पृथ्वी लोक में क्रिकेट का वर्ल्ड कप होने वाला है , उसे देखने जाना है . तब से वे जो गोल हुए हैं तो अभी तक लौट कर नहीं आये हैं . इधर चित्रगुप्त जी का भी बार-बार फोन आ रहा है . "
"अरे , चित्रगुप्त जी को क्या परेशानी आ गयी , प्रभु जी ?"
"मुनिवर , यमराज जी अपना सारा कार्यभार चित्रगुप्त जी को सौप कर गए हैं . और अब उन्हें भी छुट्टी पर जाना है ,इसलिए वे बार-बार फोन कर रहे हैं ."
"प्रभु जी समस्या तो गंभीर है ,मगर ये वर्ल्ड कप तो खत्म हो चूका है . अब तक तो उन्हें आ जाना चाहिए था ."
"हाँ मुनिवर , आप थोडा पृथ्वी लोक जाकर पता तो लगाइए . यमराज जी ने तो अपना मोबाइल भी बंद कर रखा है . मिल जाएँ तो कहना कि तुरंत मुझसे संपर्क करें ."
"जो आज्ञा ,प्रभु जी , आप निश्चिन्त रहें , मैं उन्हें ढूँढ कर लाता हूँ ."
नारद मुनि यमराज जी को ढूँढते हुए पृथ्वी लोक पहुंचे . पूरा पृथ्वी लोक घूम लिया लेकिन यमराज जी कहीं नहीं मिले . अंत में थक हार कर वे भारत पहुंचे . वहां देखा कि एक जगह काफी शोर-गुल हो रहा था . मन में कौतुहल जगा . आखिर अपनी आदत से लाचार वे पहुँच गए पता लगाने . जाकर देखा तो वहां एक मैदान में क्रिकट का मैच हो रहा था . सो उन्होंने सोचा कि थोड़ी देर मैच का आनंद लिया जाय . वे बैठने कि जगह ढूँढने लगे . जगह ढूँढते-ढूँढते उनकी नजर यमराज जी पर पड़ी . देखा कि यमराज जी सबसे आगे कि पंक्ति में बैठे थे . मुनिवर ने चैन कि साँस ली कि चलो आखिर मिल ही गए यमराज जी.
नारद जी जाकर यमराज के बगल में खड़े हो गए , और धीरे से उनके कान में कहा," नारायण - नारायण ."
यमराज के कानो में जब चिर-परिचित आवाज़ पहुंची तो उन्होंने चौंक कर नारद जी की ओर देखा ,"अरे नारद जी , आप यहाँ ? आप भी आ गए मैच देखने ."
"नहीं यमराज महोदय , मैच तो आप ही को मुबारक हो . मै तो आप ही को ढूँढते हुए आया हूँ , आप तो वर्ल्ड कप देखने आये थे जो कि ख़त्म हो चूका है . ये कौन सा मैच चल रहा है ."
"अरे मुनिवर ,आप को नहीं मालूम ,ये तो वर्ल्ड कप से भी अच्छा मैच है . इसे IPL कहते हैं .यह फटाफट वाला क्रिकेट है . इसमें सबसे बढ़िया बात ये है कि यहाँ अप्सराएँ भी नाचती हैं . जब भी चौवा या छक्का लगता है ये नाचना शुरू कर देती हैं . वाह ! बड़ा मज़ा आता है इनका नाच देख कर . मै तो बस इन्ही का नाच देखने के लिए येहाँ रुका हुआ हूँ . वहां स्वर्ग में तो इन्द्र देव की वजह से अप्सराओं का नाच देखने को ही नहीं मिलता . आप भी देखिये ."
"यमराज जी वो सब तो ठीक है ,लेकिन वहां प्रभु जी नाराज़ हो रहे हैं . आप को तुरंत याद किया है . और आप का मोबाइल भी तो बंद है ."
"मगर मुनिवर मेरा मोबाइल तो चालू है ."
इतना कह कर यमराज ने तुरंत अपना मोबाइल चेक किया . पता लगा कि वाकई मोबाइल बंद है . वे घबरा गए कि अब तो प्रभु जी की डांट खानी पड़ेगी . मन में ये विचार आते ही उन्होंने स्वर्ग लोक की ओर दौड़ लगा दी .
इधर नारद जी भी आवाज़ लगाते हुए उनके पीछे चल दिए ," अरे यमराज जी रुकिए ....... मै भी आ रहा हूँ ............"