मेरे बारे में

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The only thing I really wish to do with my life is to inspire someone. I want to touch someone’s life so much that they can genuinely say that if they have never met me then they wouldn’t be the person they are today. I want to save someone; save them from this cold, dark and lonely world. I wish to be someone’s hero, someone that people look up to. I only wish to make a change, even if it’s a small one. I just want to do more than exist.

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

इन्तजार.........

जवां रात के सीने पे ............
दुधिया आंचल मचल रहा है.......
किसी हसीं ख्वाब की तरह......
हंसीं फूल....
हंसीं पत्तियां......
हंसीं शाखें ........
लटक रही हैं ..........
पेड़ों से........
किसी नाजनीं की तरह ........
आज फिर वो हंसीं लम्हें मुझसे मिलने आयें हैं.........
तेरे होठों पर तबस्सुम की हल्की सी लकीर..........
मेरे ख्वाब में रह-रह कर झलक रही है ...........
तेरे कांपते होंठों की जादू भरी हंसीं.....
मेरे सीने में कोई जाल बुन रही है.........
तू नज़रें झुकाय.....
खुद अपने कदमों की आहट से झेंपते हुए........
डरते हुए........
फूल चुन रही है.......
मै धड़कते दिल से........
खुदा से फरियाद कर रहा हूँ .........
कि मेरे आरजू के कँवल .......
खिल कर फूल हों जाएँ .........
दिले- नज़र की दुआएं मेरी कबूल हों जाएँ .........
जुबां मेरी खुश्क हैं ........
आवाज रूकती सी जाती है........
न जाने आज मै क्या बात कहने  वाला हूँ........
तुम अपनी धुन में फूल चुनती जा रही हो.........
दबे सुरों में शायद........
कोई गीत गुनगुना रही हो......
रोज़ की तरह आज भी तारे........
सुबह की गर्द में खो रहे हैं ...........
ये तन्हाई की घड़ियाँ ........
किसी नागिन की तरह मुझे डस रही हैं........
जहां में हुस्न की ठंडक का असर हो रहा है.........
दूर वादियों में दूधिया बादल ...........
झुक कर पर्वतों को प्यार कर रहे हैं.........
दिल में नाकाम हसरतों को लिए........
हम तेरा इन्तजार कर रहे हैं......

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

ख्यालों के गुल


Image: Evgeni Dinev / FreeDigitalPhotos.net
फूलों की घाटी ,
झरनों की वादियाँ ,
बर्फ की बारिश..........
ढेरों चित्र आँखों में कैद थे........
तुम्हारे साथ गुज़ारा,
हर लम्हा दिल की जागीर था.....
यादों का आलम यह था कि,
रेत पर तुम्हारा नाम कब लिख दिया ,
पता ही न चला.........
फिर उसे सीपियों से सजाया और ,
अपने आँचल में उसे छुपा लिया.........
शायद यही चाहत है,
कि, ख्यालों के गुल ,
किताब में उतर आये हैं ........... 

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

इ ससुरा मोबईल्वा...........

                             कल शाम को बैठे-बठे अचानक हमारा घूमने का मूड बन गया. सोचा की काफी दिन हो गए, पैदल घूमे हुए. क्या है कि इधर कई दिनों से मोटर-साईकिल के साथ हमारा फेविकोल का जोड़ बन गया था. जहाँ भी जाते, मोटर-साईकिल से ही जाते थे .  आस-पास भी कहीं काम होता तो मोटर-साईकिल की पहले याद आती .
                              इसलिए हमने सोचा कि कहीं अपना ख्याल बदल न जाय , सो तुरंत ग्यारह नंबर की बस पकड़ चल दिए बाज़ार की ओर तफरीह करने. अपने आस-पास के वातावरण का आनंद लेते हुए हम टहलते रहे.
                              टहलते-टहलते अभी कुछ ही दूर तक पहुंचे थे कि सामने से मिश्राजी आते हुए दिखाई पड़ गए . मन में हमने सोचा कि चलो आज इन्हीं को खोदा जाय . हमने उन्हें जोर से आवाज लगाई .
                             "अरे मिश्राजी ,प्रणाम , कैसे हैं ?"   
                              मिश्राजी ने हमें देखा तो उनके चेहरे पर घडी के विज्ञापन की तरह , सवा दस , बजने लगे . मिश्राजी हमारे परिचित हैं . काफी मिलनसार एवं मजाकिया  स्वभाव के व्यक्ति हैं . उम्र लगभग पचपन के करीब होगी . हमारे पास आये तो मुस्कुराते हुए पूछने लगे .
                             "काय दादू , कैसन हो ."   और पूछने के बाद आसमान की ओर देखने लगे .
                             हमने पूछा ,"ऊपर क्या देख रहे हैं , आदरणीय ?"
                             "देख  रहा हूँ दादू...... कि आज इ सूरजवा किधर से उगा है . आप और आज पैदल ? गडिया बेच दई का , या आपकी  गड़िया  भी धन्नो के टंगवा के साथ भाग गई ?"
                             हमने भी खीसें नपोरते हुए जवाब दिया,"अरे नहीं भाईसाब , बस  आज यूँ ही घूमने की इच्छा हुई..........तो निकल आय घूमने .......आप सुनाइए , काफी दिनों बाद नज़र आ रहें हैं . कहीं बाहर गए थे क्या ?"
                             "हाँ दादू , तनक इलाहबाद गए रय , गंगा नहाई के लाने . हमरी मिश्राइन कई  दिना से पीछे लगी रई कि गंगा नहाई का है , जई से हमने सोची कि मिश्राइन का गंगा-दर्शन करवाई दई . फिर पता नई कब जाना होत है ." 
                             "अच्छा , तो हो गये गंगा मैया के दर्शन ?"
                             " अरे दर्शन क्या , हम तो बड़े परेशान भय रय उते ."
                             " क्यों मिश्राजी , ऐसी क्या बात हो गयी थी ."
                             "अरे उधर हमरी मिश्रइन खो गयी रई ,"
                             " मिश्राइन खो गयी थी...?...... कुछ समझा नहीं मिश्राजी ?
                             " अरे अब का बतई , वो का भओ कि हम दोनों पहुंचे संगम . नहाना-धोना , दर्शन सब से निपटे तो हमरी पान खाई की इच्छा भई . हमने मिश्राइन से कई की हम आत हैं तनक पान खाई के , जब तक तुम तैयार होवो .इतन बताय के हम आ गए ऑटो-स्टैंड के पास . पान वगैरह खाई के जब हम पहुंचे वापस ,तो देखा की हमरी मिश्राइन गायब . वो क्या था कि तैयार होकर मिश्राइन ने सोची , कि मई पान खाय के लाने ऑटो-स्टैंड तो आया हूँ , और फिर उतनी दूर वापस जाऊंगा , सो खुदई  पहुँच गयी  रइ ऑटो-स्टैंड , सामान उठाई के . अब वो हमका ढुंढत  रइ और हम उका . हम दोनों के पास मोबईल्वा था , मगर ससुरा समय पर उ भी न लगे . काफी देर तक हम दोनों  परेशान होत रहे . वो तो भला हो पांडे जी का , हमरे परिचित , जो हमें उंही मिल गए रहे . हमने  उन्हें अपनी समस्या बताई . उन्होंने हमसे  मोबईल्वा लिया और नंबर देख कर कहेन लगे कि हम बिना जीरो लगाय , नम्बर लगात रहे . वो क्या है कि रोमिंग  में जीरो लगान पड़े न . जब जीरो लगा कर हमने नंबर लगाया तो ससुरा झट से लग गओ . और तब जाकर हमरी मिश्राइन हमें  मिली ."
                               " हमने कहा ," वाह मिश्राजी , तो मोबाईल ने आपको धोखा दिया  और फिर मोबाइल ने ही आपको मिलाया भी ."  
                                "हओ दादू , इ मोबईल्वा भी समय पड़ने पर धोखा देत है , हम तो सचमुच घबराय गय रहे ."
                                इतना कहकर मिश्राजी मुस्कुराने लगे.

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

मुझे अब भी मोहब्बत है..........


मुझे अब भी मोहब्बत है
                अपने हाथों की सब उँगलियों से .
                             न जाने किस ऊँगली को थाम कर,
                                         मेरी माँ ने मुझे
                                                     चलना सिखाया होगा........... 

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

वो ख्वाब फिर, अधूरे रह गुए .........

वो ख्वाब फिर ,
        अधूरे रह गए !!
सोचा था, 
        वो आयेंगे ,
राह पे उनकी ,
        हम चाँद-तारें बिछायेंगे ,
फूलों से उनकी ,
        सेज को सजायेंगे ,
वो न आये ,
इंतज़ार हम करते रह गए !!
दिल के ज़ज्बात ,
        दिल में ही रह गए !!

वो ख्वाब फिर, 
          अधूरे रह गुए !!


सोचा था,
         वो आयेंगे ,
ढेर सारे पल ,
         साथ बिताएंगे ,
उन पर हम अपनी ,
         जान लुटाएंगे ,
वो न आये ,
हसरतों को हमारी,
          वो रुसवा कर गए !!
न जाने वो ,
          कहाँ खो गए !!

वो ख्वाब फिर ,
          अधूरे रह गए !! 

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

रेल को अपना निशाना बनाना छोड़ें


                             आंध्र प्रदेश में पृथक तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर आंदोलनरत तेलगांना संयुक्त कार्रवाई समिति ने बुधवार से तीन दिनों तक रेलमार्ग अवरूद्ध करने का फैसला किया है, जिससे 100 से अधिक रेलगाड़ियां स्थगित कर दी गई हैं। गौरतलब है कि पिछली बार 24 और 25 सितम्बर को दो दिनों के लिए रेलमार्ग अवरूद्ध किए गए थे, जिसकी वजह से 72 एक्सप्रेस रेलगाड़ियों और 264 सवारी रेलगाड़ियों को रद्द किया गया था।
                           
                            वाह रे देश के नेता !!!..... अपना मतलब साधने के लिए क्या तुम्हें सिर्फ रेल गाड़ियाँ ही दिखाई देती हैं? सत्ता की रोटियां सेकने के लिए रेल रोको आन्दोलन ही तुम्हें दिखता है ?
                           ये इस देश की विडंबना ही है कि जिसे भी अपनी आवाज बुलंद करनी होती है, वो रेल संचालन अवरुद्ध करने पर उतारू हो जाता है . अभी कुछ समय पहले की बात को ही लीजिये , जब गुर्जर आन्दोलन हुआ था , तब भी इन नेताओं को रेलवे ही की याद आई थी .
                         जिसे देखो अपना गुस्सा रेल पर उतरना शुरू कर देता है.  इन लोगों को ये चिंता नहीं होती कि रेल रोकने से आम जनता को कितनी तकलीफ होती है . इन आंदोलनों कि वजह से रेलवे को कितना नुकसान उठाना पड़ता है .  रेल अगर न चले तो रोज़ इस देश को करोड़ों रुपयों का नुकसान में होता है. ये सारी चीजें इनको नहीं दिखाई देती .  दिखाई देता है तो बस, अपना मतलब . 
                         ऐसे खुदगर्ज़ लोगों से मेरी विनती है कि रेल को अपना निशाना बनाना छोड़ें और कुछ इस देश का ख्याल करें . 

सोमवार, 5 सितंबर 2011

खुबसूरत पंक्तियाँ........

विज्ञानं कहता है "जीभ पे लगी चोट सबसे जल्दी ठीक होती है,
और....ज्ञान कहता है "जीभ से लगी चोट कभी ठीक नहीं होती."

जिंदगी की आधी शिकायतें ऐसे ही ठीक हो जाएँ
अगर लोग......"एक दूसरे के बारे में बोलने की जगह, 
एक दूसरे से बोलना सीख जाएँ ."


हमारा अच्छा समय दुनिया को बताता है कि हम क्या हैं,
और हमारा बुरा समय हमें बताता है कि दुनिया क्या है.......


रास्ते में आने वाले पत्थरों से घबराने की बजाय हिम्मत से उन्हें पार करें,
ये पत्थर मील के पत्थर बन जायेंगे........

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

मै वो शख्स हूँ जिसने यहाँ इंसान बदलते देखा है

इस शहर में लोगों का इमान बदलते देखा है ,
मै वो शख्स हूँ जिसने यहाँ इंसान बदलते देखा है !!

लोग तरसते रह जाते हैं एक आशयाने के लिए ,
मैंने तो  उन्हें रोज़ एक मकान बदलते देखा है !!

लोग वादा करते हैं जिन्दगी भर साथ निभाने का,
मैंने तो जनाजे में भी लोगों को कंधे बदलते देखा है !!

क्यों मायूस होते हो,जरा-जरा सी बातों पर ,
मैंने तो तूफानों में भी चिराग जलते देखा है !!

पानी की एक-एक बूँद को यहाँ लोग तरसते हैं,
वहां मैंने समंदर पर बादलों को बरसते देखा है !!

लोग तो शरीफ होने का बस दम भरते हैं ,
मैंने लोगों को गिर-गिर सँभलते देखा !!

क्यों, उन्हें अपने होने का इतना गुरुर है ,
मैंने तो पहाड़ों को भी टूट के बिखरते देखा है !!

रविवार, 28 अगस्त 2011

वो तस्वीर

एक रोटी नहीं दे सका
कोई......
उस मासूम को 
लेकिन.......
वो तस्वीर....... 
लाखों में बिक गयी, 
जिसमें  
रोटी के बगैर.......
बच्चा 
उदास था....... 

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

वो मज़ा कुछ और होता है.........







बारिश में भीगने का , मज़ा कुछ और होता है ,
चाहत में मर-मिटने का, मज़ा कुछ और होता है !!

याद जब आये उनकी तो, दिल को मनाने की खातिर,
तन्हाईयों में पीने का, मज़ा कुछ और होता है !!

ये आरज़ू थी हमारी, उन्हें अपनाने की लेकिन,
वो कहते है, हमें सताने का, मज़ा कुछ और होता है !!



अपनों पर सितम तो, हर कोई ढाता है, लेकिन ,
दूसरों पर सितम ढाने का, मज़ा कुछ और होता है !!



पल जीवन के, जो गुज़र जाते हैं, यादें वो पीछे छोड़ जाते हैं,
उन यादों के सहारे जीने का, मज़ा कुछ और होता है !!

मंझधार में तो हर कोई,डूब जाता है लेकिन, 
किनारों पर डूबने का ,मज़ा कुछ और होता है !!   
                           

रविवार, 31 जुलाई 2011

समस्या का समाधान.....

                                काफी समय पहले की बात है. ब्रह्माजी को एक बार छुट्टी की जरूरत पड़ी. वे विष्णु जी के पास पहुँचे. विष्णुजी ने उन्हें जाने की इजाजत देते हुए कहा की वे अपनी जगह किसी और को नियुक्त करके ही छुट्टी पर जाएँ.  
                               अब ब्रह्माजी ने सोचा कि किसको ढूंढे जो उनकी जगह काम कर सके. आखिर ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उन्हें एक ऐसा व्यक्ति मिल ही गया. वह व्यक्ति देखने में ही काफी आलसी लग रहा था. उस समय भी वह सो रहा था. ब्रह्मा जी  ने उसे जगाया और उसे अपनी समस्या बताई. वह व्यक्ति मान गया और पूछा कि उसे करना क्या पड़ेगा.
                               ब्रह्मा जी उसे अपने साथ  एक जगह ले गए, जहाँ बहुत सी मिटटी पड़ी थी. ब्रह्मा जी ने उस व्यक्ति से कहा,"देखो, ये जो मिटटी पड़ी है ना, बस इस मिटटी के तीन-चार पुतले रोज़ बना कर धरती पर फेकना है. और कोई काम नहीं है."
                                उस व्यक्ति ने सोचा कि वाह, काम तो कुछ भी नहीं है. रोज़ सिर्फ तीन-चार पुतले बनाओ और फिर तान के सो जाओ, बहुत बढ़िया. उसने हामी भर दी.
                               उसके हामी भरते ही ब्रह्मा जी उसे अपना कार्यभार सौंप कर चले गए. करीब एक हफ्ते बाद जब वो छुट्टी से वापस लौटे तो देखा कि वहां की सारी मिटटी गायब है, और वह व्यक्ति आराम से सो रहा है. उन्होंने तुरंत उसे जगाया और पूछा,"क्यों यहाँ की सारी मिटटी कहाँ गयी?"
                               उस व्यक्ति ने जवाब दिया,"प्रभुजी, वो तो मैंने सोचा की कौन रोज़-रोज़ तीन-चार पुतले बनाएगा ,इसलिए मैंने एक ही दिन में सारे पुतले बना कर धरती पर फ़ेंक दिए, और बाकी दिन आराम से सो रहा था. मगर आप इतना घबरा क्यों रहे हैं.?"
                              ब्रह्मा जी ने अपना सर पीटते हुआ कहा,"तुमने तो पूरा कचरा कर के धर दिया. सारी मिटटी के पुतले बनाने की क्या जरुरत थी ? अब उधर धरती पर जनसँख्या बढ गयी है. इतने सारे लोगों के खाने-रहने का इंतजाम करना पड़ेगा. और तुमने पुतले बनाये भी तो सब उलटे-सीधे हैं. खुद ही देख लो, किसी का हाथ नहीं है, किसी का पैर नहीं है, किसी का दिमाग नहीं है, सब के सब आड़े तिरछे बने हैं. तुमने तो काम और बढा कर रख दिया है."
                   काफी देर तक ब्रह्मा जी समस्या का हल ढूंढ़ते रहे .जब उनकी समझ में कुछ नहीं आया तो वे पहुँच गए विष्णुजी के पास . उन्हें अपनी समस्या बताई . विष्णु जी भी उनकी समस्या सुन कर सोच में पड़ गए . उन्हें भी कुछ नहीं सुझा.
                           इतने में नारद मुनि का आगमन हुआ. नारदजी के पूछने पर विष्णुजी ने उन्हें भी समस्या सुना दी. समस्या सुनते ही नारदजी ने कहा ," अरे,बस इतनी सी बात है, चलिए मै आपको इस समस्या का हल बताता हूँ . धरती लोक में एक नया सरकारी विभाग चालू करिए और सभी को उसमे भर्ती करवा दीजिये . बस ,  आपकी समस्या ख़त्म ."
                           विष्णुजी और ब्रह्माजी , दोनों को उनकी बात पसंद आती है . धरतीलोक पर एक नया विभाग चालू किया जाता है , जिसका नाम रखा जाता है  "रेलवे  विभाग " और सभी को उसमे भरती कर दिया जाता है. 

सोमवार, 18 जुलाई 2011

सुबह 07.30 बजे की ट्रेन..........

                                   आज वो फिर लेट हो गया था. ट्रेन छूटने में कुछ ही समय बाकी रह गया था. जल्दी-जल्दी स्टैंड में अपनी स्कूटर खड़ी कर, वह स्टेशन की ओर दौड़ पडा. चलते-चलते घडी पर नजर दौड़ाई तो देखा कि सिर्फ एक मिनट रह गया है, ट्रेन छूटने में. उसने सोचा कि आज तो शायद ट्रेन छूट ही जाएगी. जेब से फुर्ती में मोबाइल निकाल कर उसने अपने दोस्त को कॉल लगाई.
                                  "हेलो......सुरेन्द्र....?.... हाँ मै दीपक बोल रहा हूँ.......कहाँ हो.....?"
                                  "हाँ....दीपक......मै ट्रेन में हूँ.....पीछे से तीसरे डिब्बे में......जल्दी आओ ट्रेन स्टार्ट हो गयी है......."
                                  "अरे, स्टार्ट हो गयी.......ऐसा करो, चेन खींच दो........मै स्टेशन के बाहर हूँ.....बस आ रहा हूँ......"
                                  स्टेशन से लगभग आधी बाहर निकल चुकी ट्रेन, चेन खिंचने की वजह से खड़ी हो गयी. क़रीब पाँच मिनट बाद जब ट्रेन फिर चली, तो तब तक दीपक ट्रेन में पहूँच चुका था.
                                  ट्रेन में पहुँच कर उसने राहत की साँस ली. अगले स्टेशन पर उतर कर, वह पीछे से तीसरे डिब्बे में पहुँच गया, जहाँ कि उसका दोस्त बैठा था. दोनों आपस में इधर-उधर की बातें करने लगे. 
                                  यह उनका रोज़ का रुटीन बन गया था. रोज़ सुबह 07.30 बजे की ट्रेन से वे आना-जाना करते थे. पास ही के एक छोटे से शहर में एक प्रायवेट कम्पनी में वे नौकरी करते थे. कई साल हो चुके थे उन्हें, अत: अब तो उन्हें आदत पड़ गयी थी, इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी की.
                                  आज रोज़ के मुकाबले कुछ ज्यादा ही भीड थी ट्रेन में. बातें करते-करते दीपक की नजर एक बुजुर्ग सज्जन पर पडी, जो काफी देर से जगह ना होने के कारण, खडे हुऐ थे. वे काफ़ी बेचैन भी नजर आ रहे थे. उनकी उम्र का लिहाज़ कर दीपक ने उन्हें अपनी सीट पर बैठा लिया. वे बुजुर्ग सज्जन उसे दुआएँ देते हुए बैठ गए. दीपक ने बातें करते हुए उनसे परेशानी का कारण पूछ लिया. 
                                  बुजुर्ग ने कहा,"क्या बताऊँ बेटा, घर से जल्दी में निकला था, स्टेशन के लिए, जब टिकट खरीदने के लिए टिकट-खिड़की पर गया तो वहाँ काफी भीड़ थी. इधर ट्रेन भी आकर खड़ी थी. कही ट्रेन न छूट जाय, इसलिए बिना टिकट लिए ही ट्रेन में बैठ गया हूँ. अब तो यही सोच रहा हूँ कि कोई टी.सी. ना पकड़ ले."
                                  "कोई बात नहीं दादा, आज ट्रेन में कोई टी.सी. नहीं दिखाई दिया मुझे. कोई नहीं पकडेगा, शांति से बैठिये. वैसे आपको उतरना कहाँ है."
                                  "बस अगले स्टेशन पर ही उतरना है मुझे बेटा, लेकिन उतरने के बाद गेट पर भी तो टी.सी. टिकट पुछेगा."
                                  दीपक ने मुस्कुराते हुए कहा,"चलिए दादा, आज आपको गेट से बाहर निकलवाना मेरी जिम्मेदारी है, मुझे भी अगले स्टेशन पर ही उतरना है, बस आप मेरे पीछे-पीछे चलते रहना, कुछ फासले पर, ठीक है?"
                                  कुछ देर बाद ट्रेन अगले स्टेशन रुकी. दीपक ने उन बुजुर्ग व्यक्ति को अपने पीछे आने का इशारा कर गेट की ओर चल दिया.
                                  गेट पर टी.सी. यात्रियों की टिकट चैक कर रहा था. दीपक धीरे-धीरे चलते हुए गेट पर पहुँचा. जैसे ही टी.सी. ने दीपक से टिकट दिखाने को कहा, उसने बाहर की ओर दौड़ लगा दी. टी.सी. ने दीपक को भागते हुए देखा, तो पीछे से आवाज लगायी, और उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा.
                                  अब टी.सी. के गेट से हटते ही बुजुर्ग सज्जन फुर्ती में गेट से बाहर निकल गए. उधर कुछ दूर पर टी.सी. ने दीपक को पकड़ लिया, और उससे टिकट मांगी. दीपक ने चुपचाप जेब से मंथली सीज़न टिकट निकाल कर टी.सी. के हाथ पर रख दी. टी.सी. ने टिकट चैक करते हुए पूछा,"जब तुम्हारे पास टिकट थी, तो फिर भागे क्यों थे.?"
                                 दीपक ने टिकट को अलट-पलट कर देखते हुए कहा,"भाई साब, इस टिकट पर तो ऐसा कहीं नही लिखा कि भागना मना है."
                                 टी.सी ने दीपक को घूर कर देखा और फिर बडबडाता हुआ गेट की तरफ़ चला गया.दीपक ने मुस्कुरातें हुए बुजुर्ग व्यक्ति की तरफ़ देखा, जो तब तक बाकी लोगों के साथ उनके पास आ चुके थे. वे उसे दुआएँ देने लगे और धन्यवाद देते हुए चले गए.दीपक भी गुंनगुनाता हुआ अपने आफिस की तरफ चल दिया.

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

बारिशों के मौसम में......



कुछ ख्वाब से उभर आए है,                        
बारिशों   के   मौसम    में .


               अरमां दिल में जग आए है ,
               बारिशों   के   मौसम   में .

                           ज़हन में वो याद आए हैं,
                           बारिशों  के  मौसम  में .


                                               आंखे  भीग  आई   हैं ,
                                               बारिशों के मौसम में .


                                                          पल जो कल साथ बिताये थे,
                                                          बारिशों    के    मौसम   में .


                                                                   आज फिर नज़रों में छाए हैं,
                                                                   बारिशों   के   मौसम   में .


                                                                                फूलों पर बिखरी है शबनम
                                                                                बारिशों   के   मौसम   में .


                                                                                                   बूँदे बनी हैं आज दुल्हन
                                                                                                   बारिशों   के   मौसम   में 

बुधवार, 6 जुलाई 2011

रेलवे की नई ई-टिकट सेवा जल्द

भारतीय रेलवे अपनी ई-टिकट सेवा शुरू करने वाला है. इसमें ट्रैवल एजेंट के लिये जगह नहीं होगी और यह सिर्फ व्यक्तिगत इस्तेमाल करने वालों के लिये आरक्षित होगी.

आईआरसीटीसी की ई-टिकट से इतर भारतीय रेल की इस नयी सेवा में ट्रैवल एजेंटों और व्यावसायिक संगठनों की कोई भूमिका नहीं होगी. वेबसाइट पर सिर्फ व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं को ही टिकट खरीदने की अनुमति होगी.

आईआरसीटीसी सेवा में ट्रैवल एजेंटों पर टिकटों की बुकिंग कराकर उसे ऊंची कीमतों पर बेचने का आरोप है.

लोगों की नाराजगी को देखते हुए रेलवे ने आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर व्यस्ततम समय में ट्रैवल एजेंटों को तत्काल टिकट की बुकिंग से रोक दिया है.

नयी रेलवे ई-टिकट सेवा के तहत ग्राहकों को सेवा प्राप्त करने के लिये पहली बार खुद को पंजीकृत करने की जरूरत होगी. पंजीकरण नि:शुल्क होगा.

शुरू में प्रति यूजर आईडी पर प्रति महीने अधिकतम आठ लेन-देन की अनुमति होगी.  शयनयान श्रेणी के लिये प्रति टिकट पांच रुपये सेवा शुल्क लगेगा जबकि अन्य श्रेणियों के लिये प्रति टिकट दस रुपये होगा.

आईआरसीटीसी शयनयान श्रेणी के लिये प्रति टिकट दस रुपये और अन्य श्रेणियों के लिये 20 रुपये प्रति टिकट शुल्क लेती है.

नयी सेवा www.indianrailways.gov.in पर उपलब्ध होगी.

सेवा रात साढ़े 12 बजे से रात साढ़े 11 बजे तक (करीब तेईस घंटे) उपलब्ध होगी और सिर्फ बीच के एक घंटे के लिए बंद रहेगी.

परियोजना की शुरुआत इस उद्देश्य से की गई है कि लोगों के लिये एक ही विंडो इंटरफेस पर सभी सेवाएं एवं सूचनाएं उपलब्ध हो जाएं.

इस सेवा से यात्रियों के लिए टिकट बुक कराने के अन्य रास्ते खुल जाएंगे जबकि आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर दबाव कम होगा.

मोबाइल फोन पर भी टिकट बुक कराने की सेवा देने का प्रस्ताव है.
सेवा लेने के इच्छुक और इंटरनेट रखने वाले ग्राहकों को भारतीय रेल की वेबसाइट से मोबाइल फोन पर मोबाइल टिकट आवेदन डाउनलोड करना होगा.

वेबसाइट पर जल्द ही मालगाड़ी और पार्सलों की स्थिति का पता लगाने के अलावा कई अन्य सेवाएं शुरू होने की उम्मीद है.

प्रार्थना जो सुन ली गयी........

मैंने भगवान से मांगी शक्ति ,                            
उसने दी मुझे कठिनाइयाँ ,
हिम्मत बढाने के लिए .

                                          मैंने भगवान से मांगी बुद्धि ,
                                          उसने दी मुझे दी उलझने ,
                                          सुलझाने के लिए.

मैंने भगवान से माँगा प्यार ,
उसने दिए मुझे दुखी लोग,
निस्स्वार्थ सेवा करने के लिए  .

                                          मैंने भगवान से माँगा वरदान ,
                                          उसने दिए मुझे अवसर ,
                                          उसे प्राप्त करने के लिए .

मैंने भगवान से मांगी हिम्मत ,
उसने मुझे दी परेशानियाँ ,
ऊपर उठने के लिए .

                                         वो मुझे नहीं मिला , जो मैंने माँगा था ,
                                         मुझे वो मिल गया , जो मुझे चाहिए था .

गुरुवार, 30 जून 2011

रात में ही तो मैखाने आबाद होते हैं......

यहाँ मोहब्बत रोज़ बिकती है सड़कों पर,
इश्क  सरे-आम  निलाम  होता  है  !!

जिंदगी रोज़ लगती है दाँव पर और,
मौत  का  नाम  बदनाम   होता है !!

रात में ही तो मैखाने आबाद होते हैं,
सबके हाथों में फिर जाम होता है !!

दौर  चलता है  जब  पीने-पिलाने का तो,
सबकी जुबां पर हमारा ही नाम होता है !!

उनका  तो  काम  ही  है,  बेवफाई  करना,
मेरे दिल फिर तू क्यों बेवजह परेशान होता है !!

पतझर के मौसम में, अकेला माली क्या करे,
बागों को बसाना तो माली का काम होता है !!

'विजय' तू तो अब बिक चूका है बाजारों में ,
देखें  अब  क्या  तेरा  अंजाम  होता  है !!

गुरुवार, 23 जून 2011

सुबह की चाय और अख़बार......

                               --बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब बाबा रामदेव द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ किये जा रहे आन्दोलन को बर्बरतापूर्वक कुचल दिया गया . आधी रात के वक्त लोगों को लाठियों से पीट-पीट कर खदेड़ा गया .
                               --कुछ सालों पहले घटित आरुषी हत्याकांड को शायद अभी कोई भूला नहीं होगा, जब एक मासूम लड़की की कुछ दरिंदों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी .
                               --कुछ समय पहले घटित निठारी हत्याकांड को लीजिये , जब दरिंदगी की हद ही हो गयी थी . उपरोक्त सारे घटनाक्रम को मिडिया और सामाजिक संगठनो ने जम कर उछाला .
                               ऐसी कितनी ही घटनाएँ हमारे आस-पास घटती रहती हैं . कहीं किसान आत्महत्या कर रहे हैं . कहीं नव-विवाहिताएं दहेज़ की बलि चढाई जा रही हैं . कहीं चोरी डकैती हो रही हैं . कहीं एक ही परिवार के लोग आपस में लड़-मर रहे हैं . कहीं जमीन-जायदाद के लिए झगडे हो रहे हैं . तो कहीं बाल श्रमिकों का बचपन छीना जा रहा है. 
                               ये सब घटनाएँ अख़बार में मुख्य पृष्ठ पर जगह पा ही जाती हैं . सुबह की गरमा-गरम प्याली के साथ ऐसी घटनाएँ पढ़ी जाती हैं . कोई इन ख़बरों को कड़वी गोली की तरह हजम कर जाता है, मानो संवेदनाएं ही मर गयी हों . किसी का आक्रोश फट पड़ा तो सरकार और समाज को दो-चार अपशब्द कह डालता है . कोई मन मसोस कर रह जाता है . कोई सोचता है की ऐसा नहीं होना चाहिए था . 
                              अख़बार पढते-पढते कानों में श्रीमतीजी कि आवाज आई कि अखबार छोड़ो और चाय पियो, रखे-रखे ठंडी हो रही है . अखबार बाजू में कर देखा तो वाकई चाय ठंडी हो गयी थी. इधर चाय ठंडी हुई और उधर श्रीमतीजी का पारा गरम हो गया. हमने भी अनदेखा कर कहा कि ठंडी चाय पीने में मजा नहीं आएगा, इसे दोबारा गरम कर के ले आओ . हमारी श्रीमतीजी गुस्से में चाय फिर गरम करने चली गयीं . इधर मन में फिर विचार उठ रहे थे .
                          सरकार क्या है ?......समाज क्या है ?........ इन घटनाओं में आये पात्र कौन हैं ?......... क्या वे किसी दुसरे गृह से आये प्राणी हैं ?
                          नहीं, इन सारी घटनाओं के पात्र हम खुद ही हैं. हम ही से मिल कर यह समाज बना है. हम सभी इस के लिए दोषी हैं. हम सही हैं , हमारे सिद्धांत सही हैं, गलती तो दूसरों की है , यह मानसिकता बदलनी होगी. अगर हम खुद ही अनुशासित हो जाएँ, तो इस समाज में क्रन्तिकारी परिवर्तन हो जाएँगे .    

मंगलवार, 21 जून 2011

लोकपाल बिल या लूटपाल बिल........

                                आखिरकार आज फिर लोकपाल ज्वाइंट ड्राफ्टिंग कमिटी की बैठक बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई . सरकार नही चाहती कि एक मजबूत लोकपाल बिल आए . आखिर लोकपाल पर ये हिचकिचाहट क्यों ?...... ये मतभेद क्यों ?........ सरकार चाहती है कि  लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में ज्यादा से ज्यादा पॉलिटिकल लोग होंगे और सांसदों का संसद के अंदर किया गया किसी भी तरह का करप्शन लोकपाल के दायरे से बाहर होगा. ऐसा क्यों ?....... 
                         भ्रष्ट राजनेता एक मजबूत लोकपाल बनाकर अपने पांव मे बेड़ियाँ  कैसे डालेंगे . फिर तो राजनीति उनके लिए घाटे का सौदा होगी . ये बैठकों का दौर तो बस एक नौटंकी का हिस्सा है ? ये राजनेता जानते हैं कि यदि एक मजबूत लोकपाल बिल बन गया तो आधे से अधिक सांसद जेल में होंगे . 
                         सरकार तो एक कठपुतली लोकपाल चाहती है जिसे वो जैसा चाहे नचा ले. जैसे कि एक मदारी अपने बन्दर को नचाता है , वैसा ही कुछ ये सरकार भी सोच रही है. ये सरकार लोकपाल बिल नहीं बल्कि लूटपाल बिल बनाना चाहती है. 
                         और एक विडंबना देखिये कि जिन लोगो के खिलाफ ये विधेयक तैयार होना है, उन्ही लोगों को इसे संसद में पास भी करना है. ऐसे में वो क्यों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे.    
                         हमारा सोचना सही है कि ये बिल कभी तैयार नहीं हो सकता. जब पिछले ४२ सालों से नौ बार संसद में पेश होने के बाद भी यह विधेयक अब तक लंबित है, तब कैसे हम ये आशा कर लें कि इस बार यह पास हो ही जायेगा ?
                         आइये देखें कब तक कछुए की चाल चलता ये लोकपाल (लूटपाल) बिल अपने अंजाम तक पहुँचता है.        

रविवार, 19 जून 2011

न पीना आता है,न पिलाना आता है

न  पीना  आता  है,  न  पिलाना आता है ,
हमें तो नज़रों से नज़रें मिलाना आता है !!

और देखो नज़रें मिली भी तो किनसे ,
जिन्हें सिर्फ नज़रों से पिलाना आता है !! 

न ले इम्तेहान मेरी वफ़ा का साकी ,
हमें भी रिश्तों को निभाना आता है !!

चाहे जितना जला ले इस दिल को जालिम,
हमें भी दिल की आग को बुझाना आता है !!

चाहे जितनी भी मुश्किलें आयें रास्तों पर अपने,
हमें तो हर वक़्त सिर्फ मुस्कुराना आता है !!

ऐ खुदा, तेरे दर पर हम आएं भी तो कैसे,
रास्ते में, मस्जिद के पहले तो मैखाना आता है !!

मेरे मांझी, अब तुझ पर एतबार करूँ भी तो कैसे,
तुझे तो सिर्फ कश्ती को डुबाना आता है !!

गुरुवार, 16 जून 2011

जनता की आवाज

आज देश में 
भ्रष्टाचार के खिलाफ
एक आंधी सी आई है ,

सारे लोगों ने मिलकर 
रिश्वतखोरी के खिलाफ 
एक आवाज उठाई है ,

अपने देश की दौलत को 
चन्द गद्दारों ने लूटकर 
विदेशों में जमा कराई है ,

इन नेताओं ने देश की आन 
मिटटी में मिलायी है ,

जो काम पहले अंग्रेज कर गए 
वही आज ये गद्दार 
कर रहे हैं ,

जनता के पैसों से अपनी 
जेबें भर रहें हैं 

देश की जड़ों को 
खोखला कर रहे हैं ,

ऐसे देश के गद्दारों को 
हमें सबक सिखाना होगा ,

इनका सर मुंडवा कर 
मुंह काला कर  
गधे पर बैठाना होगा ,

अन्ना हजारे और बाबा रामदेव जैसे 
और भी लोगों को 
सामने लाना होगा ,

एक नया कानून देश में 
बनाना  होगा ,

विदेशों में जमा काला धन 
वापस लाना होगा ,

देश को फिर एक 
सोने की चिड़िया बनाना होगा .

शनिवार, 11 जून 2011

भारतीय रेलवे ने बदला लोगो

              
                                    रेल मंत्रालय ने भारतीय रेल के लोगो में परिवर्तन किया है। अब रेल विभाग के लोगो में 16 की बजाय 17 सितारे होंगे। 
                                     रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक (आईएंडपी) चंद्रलेखा मुखर्जी ने बताया कि दिसंबर में रेल मंत्रालय ने मेट्रो रेलवे कोलकाता को 17वें क्षेत्रीय रेल के रूप में मंजूरी दी थी। इसलिए लोगो में परिवर्तन करना पड़ा, क्योंकि यह केवल 16 क्षेत्रीय रेल को प्रदर्शित करता था। इस लोगो को तत्काल प्रभाव से सभी क्षेत्रीय रेलों में लागू कर दिया गया है। 




Source - Bhaskar            

सोमवार, 9 मई 2011

यमराज चले क्रिकेट देखने...........

                                विष्णु जी श्रीरसागर में अपनी शैया पर विराजमान थे . वे काफी गहन सोच-विचार में मग्न थे . माथे पर चिंता की लकीरें थी . इतने में नारद जी का आगमन हुआ . 
                                "नारायण-नारायण , प्रणाम प्रभु जी ." 
                                विष्णु जी का ध्यान भंग हुआ . सामने देखा तो नारद मुनि खड़े थे . मंद-मंद मुस्कुराते हुए उन्होंने पूछा,"आइये नारद जी , आइये . कहिये मुनिवर ,कैसे आना हुआ ? कहीं रास्ता तो नहीं भटक गए ? या फिर कोई मुसीबत आन पड़ी है ?"
                               "अरे नहीं प्रभु जी , मै तो बस यूँ ही इधर से गुजर रहा था . सोचा कि आपके दर्शन कर लूँ , इसलिए चला आया . मगर प्रभु जी मैं ये क्या देख रहा हूँ ? आपके माथे पर चिंता कि लकीरें ? सब कुशल मंगल तो है?"
                               "मुनिवर , बात कुछ यूँ है कि अपने यमराज काफी दिनों से गायब हैं . पता नहीं कहाँ चले गए हैं ? कुछ दिनों पहले मेरे पास आये थे छुट्टी मांगने के लिए . कह रहे थे कि पृथ्वी लोक में क्रिकेट का वर्ल्ड कप होने वाला है , उसे देखने जाना है . तब से वे जो गोल हुए हैं तो अभी तक लौट कर नहीं आये हैं . इधर चित्रगुप्त जी का भी बार-बार फोन आ रहा है . "
                              "अरे , चित्रगुप्त जी को क्या परेशानी आ गयी , प्रभु जी ?"
                               "मुनिवर , यमराज जी अपना सारा कार्यभार चित्रगुप्त जी को सौप कर गए हैं . और अब उन्हें भी छुट्टी पर जाना है ,इसलिए वे बार-बार फोन कर रहे हैं ."
                               "प्रभु जी समस्या तो गंभीर है ,मगर ये वर्ल्ड कप तो खत्म हो चूका है . अब तक तो उन्हें आ जाना चाहिए था ."
                               "हाँ मुनिवर , आप थोडा पृथ्वी लोक जाकर पता तो लगाइए . यमराज जी ने तो अपना मोबाइल भी बंद कर रखा है . मिल जाएँ तो कहना कि तुरंत मुझसे संपर्क करें ."
                              "जो आज्ञा ,प्रभु जी , आप निश्चिन्त रहें , मैं उन्हें ढूँढ कर लाता हूँ ."
                              नारद मुनि यमराज जी को ढूँढते हुए पृथ्वी लोक पहुंचे . पूरा पृथ्वी लोक घूम लिया लेकिन यमराज जी कहीं नहीं मिले . अंत में थक हार कर वे भारत पहुंचे . वहां देखा कि एक जगह काफी शोर-गुल हो रहा था . मन में कौतुहल जगा . आखिर अपनी आदत से लाचार वे पहुँच गए पता लगाने . जाकर देखा तो वहां एक मैदान में क्रिकट का मैच हो रहा था . सो उन्होंने सोचा कि थोड़ी देर मैच का आनंद लिया जाय . वे बैठने कि जगह ढूँढने लगे . जगह ढूँढते-ढूँढते उनकी नजर यमराज जी पर पड़ी . देखा कि यमराज जी सबसे आगे कि पंक्ति में बैठे थे . मुनिवर ने चैन कि साँस ली कि चलो आखिर मिल ही गए यमराज जी. 
                              नारद जी जाकर यमराज के बगल में खड़े हो गए , और धीरे से उनके कान में कहा," नारायण - नारायण ."
                             यमराज के कानो में जब चिर-परिचित आवाज़ पहुंची तो उन्होंने चौंक कर नारद जी की ओर देखा ,"अरे नारद जी , आप यहाँ ? आप भी आ गए मैच देखने ."
                             "नहीं यमराज महोदय , मैच तो आप ही को मुबारक हो . मै तो आप ही को ढूँढते हुए आया हूँ , आप तो वर्ल्ड कप देखने आये थे जो कि ख़त्म हो चूका है . ये कौन सा मैच चल रहा है ."
                             "अरे मुनिवर ,आप को नहीं मालूम ,ये तो वर्ल्ड कप से भी अच्छा मैच है . इसे  IPL कहते हैं .यह फटाफट वाला क्रिकेट है . इसमें सबसे बढ़िया बात ये है कि यहाँ अप्सराएँ भी नाचती हैं . जब भी चौवा या छक्का लगता है ये नाचना शुरू कर देती हैं . वाह ! बड़ा मज़ा आता है इनका नाच देख कर . मै तो बस इन्ही का नाच देखने के लिए येहाँ रुका हुआ हूँ . वहां स्वर्ग में तो इन्द्र देव की वजह से अप्सराओं का नाच देखने को ही नहीं मिलता . आप भी देखिये ."
                               "यमराज जी वो सब तो ठीक है ,लेकिन वहां प्रभु जी नाराज़ हो रहे हैं . आप को तुरंत याद किया है . और आप का मोबाइल भी तो बंद है ."
                               "मगर मुनिवर मेरा मोबाइल तो चालू है ." 
                                इतना कह कर यमराज ने तुरंत अपना मोबाइल चेक किया . पता लगा कि वाकई मोबाइल बंद है . वे घबरा गए कि अब तो प्रभु जी की डांट खानी पड़ेगी . मन में ये विचार आते ही उन्होंने स्वर्ग लोक की ओर दौड़ लगा दी .
                               इधर नारद जी भी आवाज़ लगाते हुए उनके पीछे चल दिए ," अरे यमराज जी रुकिए ....... मै भी आ रहा हूँ ............"