मेरे बारे में

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The only thing I really wish to do with my life is to inspire someone. I want to touch someone’s life so much that they can genuinely say that if they have never met me then they wouldn’t be the person they are today. I want to save someone; save them from this cold, dark and lonely world. I wish to be someone’s hero, someone that people look up to. I only wish to make a change, even if it’s a small one. I just want to do more than exist.

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

इन्तजार.........

जवां रात के सीने पे ............
दुधिया आंचल मचल रहा है.......
किसी हसीं ख्वाब की तरह......
हंसीं फूल....
हंसीं पत्तियां......
हंसीं शाखें ........
लटक रही हैं ..........
पेड़ों से........
किसी नाजनीं की तरह ........
आज फिर वो हंसीं लम्हें मुझसे मिलने आयें हैं.........
तेरे होठों पर तबस्सुम की हल्की सी लकीर..........
मेरे ख्वाब में रह-रह कर झलक रही है ...........
तेरे कांपते होंठों की जादू भरी हंसीं.....
मेरे सीने में कोई जाल बुन रही है.........
तू नज़रें झुकाय.....
खुद अपने कदमों की आहट से झेंपते हुए........
डरते हुए........
फूल चुन रही है.......
मै धड़कते दिल से........
खुदा से फरियाद कर रहा हूँ .........
कि मेरे आरजू के कँवल .......
खिल कर फूल हों जाएँ .........
दिले- नज़र की दुआएं मेरी कबूल हों जाएँ .........
जुबां मेरी खुश्क हैं ........
आवाज रूकती सी जाती है........
न जाने आज मै क्या बात कहने  वाला हूँ........
तुम अपनी धुन में फूल चुनती जा रही हो.........
दबे सुरों में शायद........
कोई गीत गुनगुना रही हो......
रोज़ की तरह आज भी तारे........
सुबह की गर्द में खो रहे हैं ...........
ये तन्हाई की घड़ियाँ ........
किसी नागिन की तरह मुझे डस रही हैं........
जहां में हुस्न की ठंडक का असर हो रहा है.........
दूर वादियों में दूधिया बादल ...........
झुक कर पर्वतों को प्यार कर रहे हैं.........
दिल में नाकाम हसरतों को लिए........
हम तेरा इन्तजार कर रहे हैं......

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

ख्यालों के गुल


Image: Evgeni Dinev / FreeDigitalPhotos.net
फूलों की घाटी ,
झरनों की वादियाँ ,
बर्फ की बारिश..........
ढेरों चित्र आँखों में कैद थे........
तुम्हारे साथ गुज़ारा,
हर लम्हा दिल की जागीर था.....
यादों का आलम यह था कि,
रेत पर तुम्हारा नाम कब लिख दिया ,
पता ही न चला.........
फिर उसे सीपियों से सजाया और ,
अपने आँचल में उसे छुपा लिया.........
शायद यही चाहत है,
कि, ख्यालों के गुल ,
किताब में उतर आये हैं ........... 

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

इ ससुरा मोबईल्वा...........

                             कल शाम को बैठे-बठे अचानक हमारा घूमने का मूड बन गया. सोचा की काफी दिन हो गए, पैदल घूमे हुए. क्या है कि इधर कई दिनों से मोटर-साईकिल के साथ हमारा फेविकोल का जोड़ बन गया था. जहाँ भी जाते, मोटर-साईकिल से ही जाते थे .  आस-पास भी कहीं काम होता तो मोटर-साईकिल की पहले याद आती .
                              इसलिए हमने सोचा कि कहीं अपना ख्याल बदल न जाय , सो तुरंत ग्यारह नंबर की बस पकड़ चल दिए बाज़ार की ओर तफरीह करने. अपने आस-पास के वातावरण का आनंद लेते हुए हम टहलते रहे.
                              टहलते-टहलते अभी कुछ ही दूर तक पहुंचे थे कि सामने से मिश्राजी आते हुए दिखाई पड़ गए . मन में हमने सोचा कि चलो आज इन्हीं को खोदा जाय . हमने उन्हें जोर से आवाज लगाई .
                             "अरे मिश्राजी ,प्रणाम , कैसे हैं ?"   
                              मिश्राजी ने हमें देखा तो उनके चेहरे पर घडी के विज्ञापन की तरह , सवा दस , बजने लगे . मिश्राजी हमारे परिचित हैं . काफी मिलनसार एवं मजाकिया  स्वभाव के व्यक्ति हैं . उम्र लगभग पचपन के करीब होगी . हमारे पास आये तो मुस्कुराते हुए पूछने लगे .
                             "काय दादू , कैसन हो ."   और पूछने के बाद आसमान की ओर देखने लगे .
                             हमने पूछा ,"ऊपर क्या देख रहे हैं , आदरणीय ?"
                             "देख  रहा हूँ दादू...... कि आज इ सूरजवा किधर से उगा है . आप और आज पैदल ? गडिया बेच दई का , या आपकी  गड़िया  भी धन्नो के टंगवा के साथ भाग गई ?"
                             हमने भी खीसें नपोरते हुए जवाब दिया,"अरे नहीं भाईसाब , बस  आज यूँ ही घूमने की इच्छा हुई..........तो निकल आय घूमने .......आप सुनाइए , काफी दिनों बाद नज़र आ रहें हैं . कहीं बाहर गए थे क्या ?"
                             "हाँ दादू , तनक इलाहबाद गए रय , गंगा नहाई के लाने . हमरी मिश्राइन कई  दिना से पीछे लगी रई कि गंगा नहाई का है , जई से हमने सोची कि मिश्राइन का गंगा-दर्शन करवाई दई . फिर पता नई कब जाना होत है ." 
                             "अच्छा , तो हो गये गंगा मैया के दर्शन ?"
                             " अरे दर्शन क्या , हम तो बड़े परेशान भय रय उते ."
                             " क्यों मिश्राजी , ऐसी क्या बात हो गयी थी ."
                             "अरे उधर हमरी मिश्रइन खो गयी रई ,"
                             " मिश्राइन खो गयी थी...?...... कुछ समझा नहीं मिश्राजी ?
                             " अरे अब का बतई , वो का भओ कि हम दोनों पहुंचे संगम . नहाना-धोना , दर्शन सब से निपटे तो हमरी पान खाई की इच्छा भई . हमने मिश्राइन से कई की हम आत हैं तनक पान खाई के , जब तक तुम तैयार होवो .इतन बताय के हम आ गए ऑटो-स्टैंड के पास . पान वगैरह खाई के जब हम पहुंचे वापस ,तो देखा की हमरी मिश्राइन गायब . वो क्या था कि तैयार होकर मिश्राइन ने सोची , कि मई पान खाय के लाने ऑटो-स्टैंड तो आया हूँ , और फिर उतनी दूर वापस जाऊंगा , सो खुदई  पहुँच गयी  रइ ऑटो-स्टैंड , सामान उठाई के . अब वो हमका ढुंढत  रइ और हम उका . हम दोनों के पास मोबईल्वा था , मगर ससुरा समय पर उ भी न लगे . काफी देर तक हम दोनों  परेशान होत रहे . वो तो भला हो पांडे जी का , हमरे परिचित , जो हमें उंही मिल गए रहे . हमने  उन्हें अपनी समस्या बताई . उन्होंने हमसे  मोबईल्वा लिया और नंबर देख कर कहेन लगे कि हम बिना जीरो लगाय , नम्बर लगात रहे . वो क्या है कि रोमिंग  में जीरो लगान पड़े न . जब जीरो लगा कर हमने नंबर लगाया तो ससुरा झट से लग गओ . और तब जाकर हमरी मिश्राइन हमें  मिली ."
                               " हमने कहा ," वाह मिश्राजी , तो मोबाईल ने आपको धोखा दिया  और फिर मोबाइल ने ही आपको मिलाया भी ."  
                                "हओ दादू , इ मोबईल्वा भी समय पड़ने पर धोखा देत है , हम तो सचमुच घबराय गय रहे ."
                                इतना कहकर मिश्राजी मुस्कुराने लगे.