हमारे एक परिचित हैं, नाम है मिश्राजी , मगर शायद ही कोई उन्हें इस नाम से संबोधित करता होगा. सभी उन्हें भगवन कहकर बुलाते हैं. उम्र के मामले में, उन्होंने पचपन का आंकड़ा तो पार कर ही लिया होगा. बातें हमेशा मीठी-मीठी करते हैं. काफी मिलनसार और मजाकिया स्वाभाव के हैं.
एक दिन मिल गए हमें. दुनिया जहान की बातें होने लगी. बातों-बातों में शादी-ब्याह की बातें चली तो कहने लगे,"क्या जमाना आ गया है. आजकल के बच्चे तो शादी के पहले ही साथ में घूमना-फिरना शुरू कर देते हैं . हमारे ज़माने में तो शादी के पहले मिलना जुलना तो दूर की बात थी , चेहरा तक नहीं देखने को मिलता था,"
हमने भी उन्हें छेड़ते हुए कहा,"भगवन कुछ अपनी सुनाओ, आपकी शादी कब हुई थी ?"
अब क्या था , उन्हें श्रोता मिल गया, तो शुरू हो गए अपनी पहली मुलाकात के बारे में बताने.
कहने लगे,"भाई , हमरी शादी जब भइ थी तो हमार उमर राही पन्द्रह साल और हमरी मिश्राइन रइ बारह साल की . अब हम का बताई ,सारी शादी भइ गयी मगर हमें उनका चेहरा देखन को नाहीं मिला. शादी के बाद बारात बिना दुल्हन के वापस आ गयी . दुल्हन को बाद में ,जब गौने की रस्म होती है ना , लड़का-लड़की के अठारह साल के होने पर, तब लाया जाता है ."
"शादी को दो साल बीत गए . एक दिन हमने सोची , कि कछु भी हो , एक बार तो किसी तरह मिश्राइन से मुलाकात की जाय .सो हम पहुँच गए उका गाँव .वहां अपने एक रिश्तेदार के इहाँ पहुंचे . बातों-बातों में उन्हें मन की बात बताई .वो बोले कि चलो हम दूर से तुम्हें बताय दई ,आगे तुम जानो ."
"अब हम उनके साथ पहुंचे नदिया किनारे , जहाँ वो कपडा धोवत रइ . हमरे रिश्तेदार ने हमें दूर से बता दिया कि वही है हमरी मिश्राइन . अब हम थोड़ी देर तक तो उन्हें निहारत रहे , फिर बात करने की सोची . सो हम मिश्राइन के पास गए , और कहा कि जरा तनक साबुन दई दो ,नहाने के लिए, हम घर से लाना भूल गए हैं . मिश्राइन ने हमें घूर के देखा और कहा कि शर्म नहीं आवत है , साबुन मांगते हुए . वो सामने दुकान है ,जाकर खरीद लो ."
"अब हम कुछ कहते , उसके पहले ही एक छोटा बच्चा जो वहीँ पर खड़ा हमें बड़े गौर से देख रहा था , कहने लगा कि अरे फूफाजी आ गए , फूफाजी आ गए . हमने लड़के को डांटा , और कहा कि चल हट ,कछु भी बोलता है , मै तेरा फूफा-वुफा नाही हूँ . हमारा इतना कहना था कि मिश्राइन तुरंत समझ गयीं कि हम कौन हैं . उसने तुरंत सारे कपडे-बाल्टी समेटी और दौड़ लगा दी अपने घर की तरफ ."
"अब हमने सोची कि हमरी पोल तो खुलन गईन है ,सो हम भी तुरंत अपने रिश्तेदार के घर पहुंचे और तैयार हो कर जैसन बहार निकले तो सामने हमारे साले साब खड़े थे . वो बोलने लगे कि अरे जीजा ,आप आये और बताया भी नहीं , और चुपचाप जा भी रहे हैं . चलिए घर माँ ने बुलाया है . हमने बहाना बनाया कि ऐसे ही तनक काम से आये थे , अब जा रहे हैं . मगर साले साब भी कहाँ मानने वाले थे ,सो ले गए पकड़ कर अपने घर .खूब खातिरदारी भई हमारी वा दिन . तो ऐसन थी हमरी पहली मुलाकात ."
इतना कह कर मिश्राजी मुस्कुराने लगे . हमने भी कहा ,"वाह मिश्राजी, क्या कहने हैं , आप तो बड़े छुपे रुस्तम निकले ."
i am very impressed in your website and We are inviting you to post an article(up to Rs.500) on our website visit: http://tinyurl.com/4l5zyvs
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका हिन्दी ब्लाग जगत की इस मनोरम दुनिया में...
जवाब देंहटाएंमनोरंजक चित्र, शिक्षाप्रद लघुकथाएँ और उत्तम विचारों से परिपूर्ण जिन्दगी के रंग में देखिये-
निरन्तरता का महत्व (लघुकथा)
निरोगी शरीर सुखी जीवन का आधार : स्वास्थ्य सुख में देखिये-
बेहतर स्वास्थ्य की संजीवनी- त्रिफला चूर्ण
बहुत बढ़िया .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना|
जवाब देंहटाएंनवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ|