आज वो फिर लेट हो गया था. ट्रेन छूटने में कुछ ही समय बाकी रह गया था. जल्दी-जल्दी स्टैंड में अपनी स्कूटर खड़ी कर, वह स्टेशन की ओर दौड़ पडा. चलते-चलते घडी पर नजर दौड़ाई तो देखा कि सिर्फ एक मिनट रह गया है, ट्रेन छूटने में. उसने सोचा कि आज तो शायद ट्रेन छूट ही जाएगी. जेब से फुर्ती में मोबाइल निकाल कर उसने अपने दोस्त को कॉल लगाई.
"हेलो......सुरेन्द्र....?.... हाँ मै दीपक बोल रहा हूँ.......कहाँ हो.....?"
"हाँ....दीपक......मै ट्रेन में हूँ.....पीछे से तीसरे डिब्बे में......जल्दी आओ ट्रेन स्टार्ट हो गयी है......."
"अरे, स्टार्ट हो गयी.......ऐसा करो, चेन खींच दो........मै स्टेशन के बाहर हूँ.....बस आ रहा हूँ......"
स्टेशन से लगभग आधी बाहर निकल चुकी ट्रेन, चेन खिंचने की वजह से खड़ी हो गयी. क़रीब पाँच मिनट बाद जब ट्रेन फिर चली, तो तब तक दीपक ट्रेन में पहूँच चुका था.
ट्रेन में पहुँच कर उसने राहत की साँस ली. अगले स्टेशन पर उतर कर, वह पीछे से तीसरे डिब्बे में पहुँच गया, जहाँ कि उसका दोस्त बैठा था. दोनों आपस में इधर-उधर की बातें करने लगे.
यह उनका रोज़ का रुटीन बन गया था. रोज़ सुबह 07.30 बजे की ट्रेन से वे आना-जाना करते थे. पास ही के एक छोटे से शहर में एक प्रायवेट कम्पनी में वे नौकरी करते थे. कई साल हो चुके थे उन्हें, अत: अब तो उन्हें आदत पड़ गयी थी, इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी की.
आज रोज़ के मुकाबले कुछ ज्यादा ही भीड थी ट्रेन में. बातें करते-करते दीपक की नजर एक बुजुर्ग सज्जन पर पडी, जो काफी देर से जगह ना होने के कारण, खडे हुऐ थे. वे काफ़ी बेचैन भी नजर आ रहे थे. उनकी उम्र का लिहाज़ कर दीपक ने उन्हें अपनी सीट पर बैठा लिया. वे बुजुर्ग सज्जन उसे दुआएँ देते हुए बैठ गए. दीपक ने बातें करते हुए उनसे परेशानी का कारण पूछ लिया.
बुजुर्ग ने कहा,"क्या बताऊँ बेटा, घर से जल्दी में निकला था, स्टेशन के लिए, जब टिकट खरीदने के लिए टिकट-खिड़की पर गया तो वहाँ काफी भीड़ थी. इधर ट्रेन भी आकर खड़ी थी. कही ट्रेन न छूट जाय, इसलिए बिना टिकट लिए ही ट्रेन में बैठ गया हूँ. अब तो यही सोच रहा हूँ कि कोई टी.सी. ना पकड़ ले."
"कोई बात नहीं दादा, आज ट्रेन में कोई टी.सी. नहीं दिखाई दिया मुझे. कोई नहीं पकडेगा, शांति से बैठिये. वैसे आपको उतरना कहाँ है."
"बस अगले स्टेशन पर ही उतरना है मुझे बेटा, लेकिन उतरने के बाद गेट पर भी तो टी.सी. टिकट पुछेगा."
दीपक ने मुस्कुराते हुए कहा,"चलिए दादा, आज आपको गेट से बाहर निकलवाना मेरी जिम्मेदारी है, मुझे भी अगले स्टेशन पर ही उतरना है, बस आप मेरे पीछे-पीछे चलते रहना, कुछ फासले पर, ठीक है?"
कुछ देर बाद ट्रेन अगले स्टेशन रुकी. दीपक ने उन बुजुर्ग व्यक्ति को अपने पीछे आने का इशारा कर गेट की ओर चल दिया.
गेट पर टी.सी. यात्रियों की टिकट चैक कर रहा था. दीपक धीरे-धीरे चलते हुए गेट पर पहुँचा. जैसे ही टी.सी. ने दीपक से टिकट दिखाने को कहा, उसने बाहर की ओर दौड़ लगा दी. टी.सी. ने दीपक को भागते हुए देखा, तो पीछे से आवाज लगायी, और उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ा.
अब टी.सी. के गेट से हटते ही बुजुर्ग सज्जन फुर्ती में गेट से बाहर निकल गए. उधर कुछ दूर पर टी.सी. ने दीपक को पकड़ लिया, और उससे टिकट मांगी. दीपक ने चुपचाप जेब से मंथली सीज़न टिकट निकाल कर टी.सी. के हाथ पर रख दी. टी.सी. ने टिकट चैक करते हुए पूछा,"जब तुम्हारे पास टिकट थी, तो फिर भागे क्यों थे.?"
दीपक ने टिकट को अलट-पलट कर देखते हुए कहा,"भाई साब, इस टिकट पर तो ऐसा कहीं नही लिखा कि भागना मना है."
टी.सी ने दीपक को घूर कर देखा और फिर बडबडाता हुआ गेट की तरफ़ चला गया.दीपक ने मुस्कुरातें हुए बुजुर्ग व्यक्ति की तरफ़ देखा, जो तब तक बाकी लोगों के साथ उनके पास आ चुके थे. वे उसे दुआएँ देने लगे और धन्यवाद देते हुए चले गए.दीपक भी गुंनगुनाता हुआ अपने आफिस की तरफ चल दिया.
मेरे बारे में
- vijay
- The only thing I really wish to do with my life is to inspire someone. I want to touch someone’s life so much that they can genuinely say that if they have never met me then they wouldn’t be the person they are today. I want to save someone; save them from this cold, dark and lonely world. I wish to be someone’s hero, someone that people look up to. I only wish to make a change, even if it’s a small one. I just want to do more than exist.
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