जवां रात के सीने पे ............
दुधिया आंचल मचल रहा है.......
किसी हसीं ख्वाब की तरह......
हंसीं फूल....
हंसीं पत्तियां......
हंसीं शाखें ........
लटक रही हैं ..........
पेड़ों से........
किसी नाजनीं की तरह ........
आज फिर वो हंसीं लम्हें मुझसे मिलने आयें हैं.........
तेरे होठों पर तबस्सुम की हल्की सी लकीर..........
मेरे ख्वाब में रह-रह कर झलक रही है ...........
तेरे कांपते होंठों की जादू भरी हंसीं.....
मेरे सीने में कोई जाल बुन रही है.........
तू नज़रें झुकाय.....
खुद अपने कदमों की आहट से झेंपते हुए........
डरते हुए........
फूल चुन रही है.......
मै धड़कते दिल से........
खुदा से फरियाद कर रहा हूँ .........
कि मेरे आरजू के कँवल .......
खिल कर फूल हों जाएँ .........
दिले- नज़र की दुआएं मेरी कबूल हों जाएँ .........
जुबां मेरी खुश्क हैं ........
आवाज रूकती सी जाती है........
न जाने आज मै क्या बात कहने वाला हूँ........
तुम अपनी धुन में फूल चुनती जा रही हो.........
दबे सुरों में शायद........
कोई गीत गुनगुना रही हो......
रोज़ की तरह आज भी तारे........
सुबह की गर्द में खो रहे हैं ...........
ये तन्हाई की घड़ियाँ ........
किसी नागिन की तरह मुझे डस रही हैं........
जहां में हुस्न की ठंडक का असर हो रहा है.........
दूर वादियों में दूधिया बादल ...........
झुक कर पर्वतों को प्यार कर रहे हैं.........
दिल में नाकाम हसरतों को लिए........
दुधिया आंचल मचल रहा है.......
किसी हसीं ख्वाब की तरह......
हंसीं फूल....
हंसीं पत्तियां......
हंसीं शाखें ........
लटक रही हैं ..........
पेड़ों से........
किसी नाजनीं की तरह ........
आज फिर वो हंसीं लम्हें मुझसे मिलने आयें हैं.........
तेरे होठों पर तबस्सुम की हल्की सी लकीर..........
मेरे ख्वाब में रह-रह कर झलक रही है ...........
तेरे कांपते होंठों की जादू भरी हंसीं.....
मेरे सीने में कोई जाल बुन रही है.........
तू नज़रें झुकाय.....
खुद अपने कदमों की आहट से झेंपते हुए........
डरते हुए........
फूल चुन रही है.......
मै धड़कते दिल से........
खुदा से फरियाद कर रहा हूँ .........
कि मेरे आरजू के कँवल .......
खिल कर फूल हों जाएँ .........
दिले- नज़र की दुआएं मेरी कबूल हों जाएँ .........
जुबां मेरी खुश्क हैं ........
आवाज रूकती सी जाती है........
न जाने आज मै क्या बात कहने वाला हूँ........
तुम अपनी धुन में फूल चुनती जा रही हो.........
दबे सुरों में शायद........
कोई गीत गुनगुना रही हो......
रोज़ की तरह आज भी तारे........
सुबह की गर्द में खो रहे हैं ...........
ये तन्हाई की घड़ियाँ ........
किसी नागिन की तरह मुझे डस रही हैं........
जहां में हुस्न की ठंडक का असर हो रहा है.........
दूर वादियों में दूधिया बादल ...........
झुक कर पर्वतों को प्यार कर रहे हैं.........
दिल में नाकाम हसरतों को लिए........
हम तेरा इन्तजार कर रहे हैं......