कल शाम को बैठे-बठे अचानक हमारा घूमने का मूड बन गया. सोचा की काफी दिन हो गए, पैदल घूमे हुए. क्या है कि इधर कई दिनों से मोटर-साईकिल के साथ हमारा फेविकोल का जोड़ बन गया था. जहाँ भी जाते, मोटर-साईकिल से ही जाते थे . आस-पास भी कहीं काम होता तो मोटर-साईकिल की पहले याद आती .
इसलिए हमने सोचा कि कहीं अपना ख्याल बदल न जाय , सो तुरंत ग्यारह नंबर की बस पकड़ चल दिए बाज़ार की ओर तफरीह करने. अपने आस-पास के वातावरण का आनंद लेते हुए हम टहलते रहे.
टहलते-टहलते अभी कुछ ही दूर तक पहुंचे थे कि सामने से मिश्राजी आते हुए दिखाई पड़ गए . मन में हमने सोचा कि चलो आज इन्हीं को खोदा जाय . हमने उन्हें जोर से आवाज लगाई .
"अरे मिश्राजी ,प्रणाम , कैसे हैं ?"
मिश्राजी ने हमें देखा तो उनके चेहरे पर घडी के विज्ञापन की तरह , सवा दस , बजने लगे . मिश्राजी हमारे परिचित हैं . काफी मिलनसार एवं मजाकिया स्वभाव के व्यक्ति हैं . उम्र लगभग पचपन के करीब होगी . हमारे पास आये तो मुस्कुराते हुए पूछने लगे .
"काय दादू , कैसन हो ." और पूछने के बाद आसमान की ओर देखने लगे .
हमने पूछा ,"ऊपर क्या देख रहे हैं , आदरणीय ?"
"देख रहा हूँ दादू...... कि आज इ सूरजवा किधर से उगा है . आप और आज पैदल ? गडिया बेच दई का , या आपकी गड़िया भी धन्नो के टंगवा के साथ भाग गई ?"
हमने भी खीसें नपोरते हुए जवाब दिया,"अरे नहीं भाईसाब , बस आज यूँ ही घूमने की इच्छा हुई..........तो निकल आय घूमने .......आप सुनाइए , काफी दिनों बाद नज़र आ रहें हैं . कहीं बाहर गए थे क्या ?"
"हाँ दादू , तनक इलाहबाद गए रय , गंगा नहाई के लाने . हमरी मिश्राइन कई दिना से पीछे लगी रई कि गंगा नहाई का है , जई से हमने सोची कि मिश्राइन का गंगा-दर्शन करवाई दई . फिर पता नई कब जाना होत है ."
"अच्छा , तो हो गये गंगा मैया के दर्शन ?"
" अरे दर्शन क्या , हम तो बड़े परेशान भय रय उते ."
" क्यों मिश्राजी , ऐसी क्या बात हो गयी थी ."
"अरे उधर हमरी मिश्रइन खो गयी रई ,"
" मिश्राइन खो गयी थी...?...... कुछ समझा नहीं मिश्राजी ?
" अरे अब का बतई , वो का भओ कि हम दोनों पहुंचे संगम . नहाना-धोना , दर्शन सब से निपटे तो हमरी पान खाई की इच्छा भई . हमने मिश्राइन से कई की हम आत हैं तनक पान खाई के , जब तक तुम तैयार होवो .इतन बताय के हम आ गए ऑटो-स्टैंड के पास . पान वगैरह खाई के जब हम पहुंचे वापस ,तो देखा की हमरी मिश्राइन गायब . वो क्या था कि तैयार होकर मिश्राइन ने सोची , कि मई पान खाय के लाने ऑटो-स्टैंड तो आया हूँ , और फिर उतनी दूर वापस जाऊंगा , सो खुदई पहुँच गयी रइ ऑटो-स्टैंड , सामान उठाई के . अब वो हमका ढुंढत रइ और हम उका . हम दोनों के पास मोबईल्वा था , मगर ससुरा समय पर उ भी न लगे . काफी देर तक हम दोनों परेशान होत रहे . वो तो भला हो पांडे जी का , हमरे परिचित , जो हमें उंही मिल गए रहे . हमने उन्हें अपनी समस्या बताई . उन्होंने हमसे मोबईल्वा लिया और नंबर देख कर कहेन लगे कि हम बिना जीरो लगाय , नम्बर लगात रहे . वो क्या है कि रोमिंग में जीरो लगान पड़े न . जब जीरो लगा कर हमने नंबर लगाया तो ससुरा झट से लग गओ . और तब जाकर हमरी मिश्राइन हमें मिली ."
" हमने कहा ," वाह मिश्राजी , तो मोबाईल ने आपको धोखा दिया और फिर मोबाइल ने ही आपको मिलाया भी ."
"हओ दादू , इ मोबईल्वा भी समय पड़ने पर धोखा देत है , हम तो सचमुच घबराय गय रहे ."
इतना कहकर मिश्राजी मुस्कुराने लगे.
इसलिए हमने सोचा कि कहीं अपना ख्याल बदल न जाय , सो तुरंत ग्यारह नंबर की बस पकड़ चल दिए बाज़ार की ओर तफरीह करने. अपने आस-पास के वातावरण का आनंद लेते हुए हम टहलते रहे.
टहलते-टहलते अभी कुछ ही दूर तक पहुंचे थे कि सामने से मिश्राजी आते हुए दिखाई पड़ गए . मन में हमने सोचा कि चलो आज इन्हीं को खोदा जाय . हमने उन्हें जोर से आवाज लगाई .
"अरे मिश्राजी ,प्रणाम , कैसे हैं ?"
मिश्राजी ने हमें देखा तो उनके चेहरे पर घडी के विज्ञापन की तरह , सवा दस , बजने लगे . मिश्राजी हमारे परिचित हैं . काफी मिलनसार एवं मजाकिया स्वभाव के व्यक्ति हैं . उम्र लगभग पचपन के करीब होगी . हमारे पास आये तो मुस्कुराते हुए पूछने लगे .
"काय दादू , कैसन हो ." और पूछने के बाद आसमान की ओर देखने लगे .
हमने पूछा ,"ऊपर क्या देख रहे हैं , आदरणीय ?"
"देख रहा हूँ दादू...... कि आज इ सूरजवा किधर से उगा है . आप और आज पैदल ? गडिया बेच दई का , या आपकी गड़िया भी धन्नो के टंगवा के साथ भाग गई ?"
हमने भी खीसें नपोरते हुए जवाब दिया,"अरे नहीं भाईसाब , बस आज यूँ ही घूमने की इच्छा हुई..........तो निकल आय घूमने .......आप सुनाइए , काफी दिनों बाद नज़र आ रहें हैं . कहीं बाहर गए थे क्या ?"
"हाँ दादू , तनक इलाहबाद गए रय , गंगा नहाई के लाने . हमरी मिश्राइन कई दिना से पीछे लगी रई कि गंगा नहाई का है , जई से हमने सोची कि मिश्राइन का गंगा-दर्शन करवाई दई . फिर पता नई कब जाना होत है ."
"अच्छा , तो हो गये गंगा मैया के दर्शन ?"
" अरे दर्शन क्या , हम तो बड़े परेशान भय रय उते ."
" क्यों मिश्राजी , ऐसी क्या बात हो गयी थी ."
"अरे उधर हमरी मिश्रइन खो गयी रई ,"
" मिश्राइन खो गयी थी...?...... कुछ समझा नहीं मिश्राजी ?
" अरे अब का बतई , वो का भओ कि हम दोनों पहुंचे संगम . नहाना-धोना , दर्शन सब से निपटे तो हमरी पान खाई की इच्छा भई . हमने मिश्राइन से कई की हम आत हैं तनक पान खाई के , जब तक तुम तैयार होवो .इतन बताय के हम आ गए ऑटो-स्टैंड के पास . पान वगैरह खाई के जब हम पहुंचे वापस ,तो देखा की हमरी मिश्राइन गायब . वो क्या था कि तैयार होकर मिश्राइन ने सोची , कि मई पान खाय के लाने ऑटो-स्टैंड तो आया हूँ , और फिर उतनी दूर वापस जाऊंगा , सो खुदई पहुँच गयी रइ ऑटो-स्टैंड , सामान उठाई के . अब वो हमका ढुंढत रइ और हम उका . हम दोनों के पास मोबईल्वा था , मगर ससुरा समय पर उ भी न लगे . काफी देर तक हम दोनों परेशान होत रहे . वो तो भला हो पांडे जी का , हमरे परिचित , जो हमें उंही मिल गए रहे . हमने उन्हें अपनी समस्या बताई . उन्होंने हमसे मोबईल्वा लिया और नंबर देख कर कहेन लगे कि हम बिना जीरो लगाय , नम्बर लगात रहे . वो क्या है कि रोमिंग में जीरो लगान पड़े न . जब जीरो लगा कर हमने नंबर लगाया तो ससुरा झट से लग गओ . और तब जाकर हमरी मिश्राइन हमें मिली ."
" हमने कहा ," वाह मिश्राजी , तो मोबाईल ने आपको धोखा दिया और फिर मोबाइल ने ही आपको मिलाया भी ."
"हओ दादू , इ मोबईल्वा भी समय पड़ने पर धोखा देत है , हम तो सचमुच घबराय गय रहे ."
इतना कहकर मिश्राजी मुस्कुराने लगे.
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