कल थी आलीशान इमारत ,
आज वहां सिर्फ खंडहर हैं ।
रोज़ सुबहो-शाम ज़हाँ पर,
पंछी चहका करते थे ।
भंवरे की गुंजन से सारे,
फूल वो महका करते थे ।
किस्से कई सुने थे हमने,
तराने कई सुने थे हमने ।
इस ईमारत के गलियारों में,
अफसाने कई सुने थे हमने ।
छाई है वहां आज ख़ामोशी,
और दूर तक पसरा सन्नाटा है ।
उठते हुए देखो वो कैसे ,
धूल के बवंडर हैं ।
कल थी आलीशान ईमारत,
आज वहां सिर्फ खंडहर हैं ।
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