सैर करो बागों के , बाज़ार में क्या रखा है !
क़त्ल कर दो निगाहों से, तलवार में क्या रखा है !!
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निगाहों का वार क़यामत का वार होता है !
हर एक तीर कलेजे के पार होता है !!
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यह तो मुमकिन नहीं कि हर कोई बनाये ताजमहल !
मगर हर दिल में एक मुमताज़ महल रहती है !!
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संग-ऐ-मर्मर की तरह साफ़, मोहब्बत हो अगर !
एक दिन ताजमहल बनके दिखा देती है !!
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लोग हर मोड़ पर रुक-रुक कर संभलते क्यों हैं !
इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं !!
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तुम्हें गैरों से कब फुरसत !
हम अपने गम से कब खाली !!
चलो बस हो चुका मिलना !
ना तुम खाली,ना हम खाली !!
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क़त्ल कर दो निगाहों से, तलवार में क्या रखा है !!
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निगाहों का वार क़यामत का वार होता है !
हर एक तीर कलेजे के पार होता है !!
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यह तो मुमकिन नहीं कि हर कोई बनाये ताजमहल !
मगर हर दिल में एक मुमताज़ महल रहती है !!
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संग-ऐ-मर्मर की तरह साफ़, मोहब्बत हो अगर !
एक दिन ताजमहल बनके दिखा देती है !!
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लोग हर मोड़ पर रुक-रुक कर संभलते क्यों हैं !
इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यों हैं !!
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तुम्हें गैरों से कब फुरसत !
हम अपने गम से कब खाली !!
चलो बस हो चुका मिलना !
ना तुम खाली,ना हम खाली !!
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