आखिरकार आज फिर लोकपाल ज्वाइंट ड्राफ्टिंग कमिटी की बैठक बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई . सरकार नही चाहती कि एक मजबूत लोकपाल बिल आए . आखिर लोकपाल पर ये हिचकिचाहट क्यों ?...... ये मतभेद क्यों ?........ सरकार चाहती है कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी कमिटी में ज्यादा से ज्यादा पॉलिटिकल लोग होंगे और सांसदों का संसद के अंदर किया गया किसी भी तरह का करप्शन लोकपाल के दायरे से बाहर होगा. ऐसा क्यों ?.......
भ्रष्ट राजनेता एक मजबूत लोकपाल बनाकर अपने पांव मे बेड़ियाँ कैसे डालेंगे . फिर तो राजनीति उनके लिए घाटे का सौदा होगी . ये बैठकों का दौर तो बस एक नौटंकी का हिस्सा है ? ये राजनेता जानते हैं कि यदि एक मजबूत लोकपाल बिल बन गया तो आधे से अधिक सांसद जेल में होंगे .
सरकार तो एक कठपुतली लोकपाल चाहती है जिसे वो जैसा चाहे नचा ले. जैसे कि एक मदारी अपने बन्दर को नचाता है , वैसा ही कुछ ये सरकार भी सोच रही है. ये सरकार लोकपाल बिल नहीं बल्कि लूटपाल बिल बनाना चाहती है.
और एक विडंबना देखिये कि जिन लोगो के खिलाफ ये विधेयक तैयार होना है, उन्ही लोगों को इसे संसद में पास भी करना है. ऐसे में वो क्यों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे.
हमारा सोचना सही है कि ये बिल कभी तैयार नहीं हो सकता. जब पिछले ४२ सालों से नौ बार संसद में पेश होने के बाद भी यह विधेयक अब तक लंबित है, तब कैसे हम ये आशा कर लें कि इस बार यह पास हो ही जायेगा ?
आइये देखें कब तक कछुए की चाल चलता ये लोकपाल (लूटपाल) बिल अपने अंजाम तक पहुँचता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें