--बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब बाबा रामदेव द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ किये जा रहे आन्दोलन को बर्बरतापूर्वक कुचल दिया गया . आधी रात के वक्त लोगों को लाठियों से पीट-पीट कर खदेड़ा गया .
--कुछ सालों पहले घटित आरुषी हत्याकांड को शायद अभी कोई भूला नहीं होगा, जब एक मासूम लड़की की कुछ दरिंदों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी .
--कुछ समय पहले घटित निठारी हत्याकांड को लीजिये , जब दरिंदगी की हद ही हो गयी थी . उपरोक्त सारे घटनाक्रम को मिडिया और सामाजिक संगठनो ने जम कर उछाला .
ऐसी कितनी ही घटनाएँ हमारे आस-पास घटती रहती हैं . कहीं किसान आत्महत्या कर रहे हैं . कहीं नव-विवाहिताएं दहेज़ की बलि चढाई जा रही हैं . कहीं चोरी डकैती हो रही हैं . कहीं एक ही परिवार के लोग आपस में लड़-मर रहे हैं . कहीं जमीन-जायदाद के लिए झगडे हो रहे हैं . तो कहीं बाल श्रमिकों का बचपन छीना जा रहा है.
ये सब घटनाएँ अख़बार में मुख्य पृष्ठ पर जगह पा ही जाती हैं . सुबह की गरमा-गरम प्याली के साथ ऐसी घटनाएँ पढ़ी जाती हैं . कोई इन ख़बरों को कड़वी गोली की तरह हजम कर जाता है, मानो संवेदनाएं ही मर गयी हों . किसी का आक्रोश फट पड़ा तो सरकार और समाज को दो-चार अपशब्द कह डालता है . कोई मन मसोस कर रह जाता है . कोई सोचता है की ऐसा नहीं होना चाहिए था .
अख़बार पढते-पढते कानों में श्रीमतीजी कि आवाज आई कि अखबार छोड़ो और चाय पियो, रखे-रखे ठंडी हो रही है . अखबार बाजू में कर देखा तो वाकई चाय ठंडी हो गयी थी. इधर चाय ठंडी हुई और उधर श्रीमतीजी का पारा गरम हो गया. हमने भी अनदेखा कर कहा कि ठंडी चाय पीने में मजा नहीं आएगा, इसे दोबारा गरम कर के ले आओ . हमारी श्रीमतीजी गुस्से में चाय फिर गरम करने चली गयीं . इधर मन में फिर विचार उठ रहे थे .
सरकार क्या है ?......समाज क्या है ?........ इन घटनाओं में आये पात्र कौन हैं ?......... क्या वे किसी दुसरे गृह से आये प्राणी हैं ?
नहीं, इन सारी घटनाओं के पात्र हम खुद ही हैं. हम ही से मिल कर यह समाज बना है. हम सभी इस के लिए दोषी हैं. हम सही हैं , हमारे सिद्धांत सही हैं, गलती तो दूसरों की है , यह मानसिकता बदलनी होगी. अगर हम खुद ही अनुशासित हो जाएँ, तो इस समाज में क्रन्तिकारी परिवर्तन हो जाएँगे .
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