चिरागों से रोशनी का पता पूछता हूँ ,
समंदर से तूफान का पता पूछता हूँ !
मुसाफिर हूँ एक , भटका हुआ यारों ,
परछाइयों से खुद अपना पता पूछता हूँ !
मैं , मेरी तन्हाई और ये बेखबर जिंदगी ,
फुरसत के इन पलों में,एक ग़ज़ल दूँढता हूँ !
कौन अजनबी था, जिसने मेरा कत्ल किया ,
खंजर से उस कातिल का पता पूछता हूँ !
खोये-खोये से क्यों ,लग रहे हैं वो आज ,
खामोश चहरे पे उनके एक हंसी दूँढता हूँ !
फिजाओं में छाई है , ये कैसी विरानियाँ ,
पतझड़ में बहारों का पता पूछता हूँ !
जाने क्या लिखा है ,विजय की किस्मत में यारों ,
इस हाथ की लकीरों में, तक़दीर दूँढता हूँ !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें