चंद रुपयों की खातिर अपना,
ईमान बेच रहा इंसान !
पैसे की अंधी दौड़ में कितना ,
आगे निकल रहा इंसान !
कितना बदल रहा इंसान ,
कितना बदल रहा इंसान !
है झूठ का चोला ओढ़े ,
लेकिन बन रहा अनजान !
देश के दामन में करता ,
गहरी चोट का निशान !
कितना बदल रहा इंसान
कितना बदल रहा इंसान
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारों ,
को कर रहा बदनाम !
चोरी डकैती हत्या बलवा ,
करके बन रहा शैतान !
कितना बदल रहा इंसान
कितना बदल रहा इंसान
रिश्ते-नाते भूला सब कुछ ,
है ये कैसा अज्ञान ,
भ्रस्टाचार के दलदल में फँसकर ,
कर रहा खुद को बदनाम !
कितना बदल रहा इंसान ,
कितना बदल रहा इंसान !
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