मुझको ये शहर आज पिघलता दिखाई दे !
मै इस नदी के पार उतर जाऊंगा मगर !
आगे कोई चिराग तो जलता दिखाई दे !!
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मेरे दिल कि राख कुरेद मत !
इसे मुस्करा के हवा न दे !
ये चिराग फिर भी चिराग है !
कहीं तेरा हाथ जला न दे !
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बदल गए हैं वो खुद , मौसमों कि तरह !
जो कह रहे थे , कि मौसम बदलने वाला है !
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हमने एक शाम चिरागों से सजा रखी है !
शर्त लोगों ने हवाओं से लगा रखी है !
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गुमान नहीं होता, कि तुम बहुत दूर हो !
यह नहीं जानता मै, कि तुम क्यों मजबूर हो !
हर तमन्नाओं को दफन करके बैठे हो !
नहीं शिकवा तुमसे कि तुम तो बेकसूर हो !
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कितना मै गम उठाऊं, इस ज़िन्दगी के साथ !
हूँ उदास अपने दिल से बेजार,ज़िन्दगी के साथ !
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